Book Title: Prakrit Vyakaranam Part 2
Author(s): Hemchandracharya, Ratanlal Sanghvi
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 643
________________ णा विश. ३२७। ३८८ [ ३० ] " अगाइज सक. (न ज्ञायते। नही जाना जाता है, ' [ ] २५२ . बान नं. (ज्ञानम्) शानं, २०३। " जाण सक, (जानीयाम्) मैं जानू, ६९१, ५३१ । । "जाणि वि. ज्ञालमनामा गया, ६७७.४०१,५१२। [ट] " जाणिऊणु, णाका स. जास्वा जान करके। समरुको पु. (उमाका) बाजा विशेष, ३२५ ॥ "जाणिणार्य वि. । ज्ञातम जाना हुआ; जाना | टिदिइ सक. (भ्रमति) चूमता है, फिरता है, १६१।। या: ७। दिवडिकह सक. (मण्डयति ) बह विभूषित करता है, व " प्राणवंदु सक (आज तु . प्रज्ञा दे, श्राएत्तं विआज्ञप्तम् . आज्ञा दिया हुआ;२८३ । । ठक्का स्त्री, (रका) बाजा विशेष विष्णव सक (विज्ञायलि) दिनति करता है।८। ठबइ सक. (स्थापयति) यह स्थापित करता है, ३५७ । ठाउ न (स्थानम्) स्थान, जगह, झवह अक्र. (विलापति) विलाप करता है, १४०. | ठाउ अक. (तिष्टतु) बैठे, स्थिर होवे, ५४२ । १४८, १५६, २०१, २९, ३.९, ४२२ । ठाएं न. (स्थानम्) स्थान, जगह, १६. ३६२ । मच्छरो पु. (मर:) याय-विशेष, झांझ, १२७ । झडइ अक. (शीर्थते नष्ट होता है पता है, १३०।। डमरुको डमक बाजा विशेष, झडत्ति अ (झटिति) शोन, डम्बरई न. [आडम्बराणि) बनावटी कामों को,४२० । झडपडहिं अ. (शीघ्रम्) झटपट, ३८८। इरई अक. (वस्यति) यह भय खाता है, १९८. झण्टइ सक. (पति) घूमता है, १६१। बल्लह सक. (पिवति) पीता है। १०। झम्म सक. (भ्रमति) घूमता है, ह इहिद सक. दहिष्यने) जलाया जायगा २४६ । भरइ अक्र. (क्षरति) झरता है, टपकता है. ७४, " हुन सक. (वयते) जलाया जाता है; २४६,२६५ । "दुझिहासक. (दहिष्यते। जलाया जायगा; २४६ । मलेकिउ वि. (संतप्तम) तपा हुआ, जला हुआ ३९५ । चालई न. (शाखा:) वृक्ष के बड़े-बड़े भाग; ४४५ । झापा सक. (ध्यायति । ध्यान करता है ६, २४० । डिम्म पु. (डिम्भ) बालक, ३८२ । " माह सक ध्यायति। ध्यान करता है. ६,०४०। " भाइविंसक (ध्यात्वा) ध्यान करके, डिम्भइ अक. (मंमते) वह खिसकता है; झाएवणु सं कु. (च्यात्या) ध्यान करके, १४०। डुङ्गरिहि पु. (पर्वतेषु) पर्वतों पर; डोगर पु. (गिरि) पर्वत ४२२। • झाणं पु.न. (ध्यान) ध्यान, झिाइ अक. (क्षीयते) क्षीण होता है. क्रमशः नष्ट होता है, २० । | ढंसह अक. (विवर्तते । वह धंसता है, गिर पड़ता है, " मिजलं अक (क्षयामि ) क्षीण होती है, ४२५ । | " झुणइ मक. जुगुप्सति घणा करता है, ४। ढक स्त्री. (डक्का) बाजा विशेष; झु'ण पु. ध्वनिः) शब्द, भावाज, १३२,३३ ।ढका स्त्री. (उस्का) बाजा विशेष; ४२७ । झुम्पचा सती. (कुटी) झोंपड़ी, कुटिया, ४१६, ४१८. ढकह सक. (छादयति वह ढांकता है । अर सक. (स्मरति) याद करती है, खेदपूर्वक ढककर वि. (अद्भत) आश्चर्यजनक, ४२२॥ चितन करती है, ७४ । । एदल्लइ सक, (भ्रमति) वह धूपता है,फिरता है, १६१ । झासिनं वि. (क्षिसम्) (जुष्टम् । सेवित आराधित । ढरढोलइ सक. (गदेषयति} यह खोजता है, १८९ । २५८ । ! दिक्कइ अक. (वृषभोगचंति) सांड गरमता है। ९९ । ११८।

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