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[ ७० ] सुहच्छडी स्त्री. (सुखासिका) सुन सहित बैठक, ४२२ । । " मखाय वि. (सम्यान ) निविड़, सधन, सान्द, १५ । सुहमछी स्त्री. (सुखासिका) " " " ३५७ । । स्थासुच्छिश्रहिं स्त्री. (सुखासिका सुख रूप अवस्था में, "चिट्टर अक. (तिष्ठति) ठहरता है. बैठता है, १६ ।
३०६ ४२७ । "चिदि अक. (तिष्ठति ठहरता है, बैठता है. ३६० । सुख्य पु.न. बि. (सुभग अच्छा भार वाला, ४१९ ।
"चिष्ठदि प्रक. (विष्यति) ठहरता है. बैठता है, २९८, सुहासिल न. (सुभाषितम्) अच्छी वाणी, ३९१ । सुहिया पृवि (हे मुखिन्) हे सुख वाले, २६३ 1 "हाई अ. (तिष्ठति) . .. ॥१६, ४३६ । सुहम. (सुखम् ) सुख, आराम, ३७०, ४४१ । | "ठन्ति अक. तिष्ठति) टहरते हैं, बैठते हैं ३९५ ।
"ठि वि. (स्थितः) ठहरा हुआ, ४.१, ३९।। " सवई सक. (सूते) जन्म देता है;
"ठित वि. (स्थितः। यहा हुआ, ४.५ । "पसवह सक. (प्रसति) जन्म देती है। बच उत्तान " ट्रिउ वि. (स्थितः) रहा हुआ, ठहरा हुआ, ४३९ । करती है,
" दिल वि. (स्थितिः) , , , , ४४८ । सक, भनक्ति) भागता है तोड़ता है। १०६ । ।
ठेअं बि.(स्थितम्) रहे हुए को, ठहरे हुए को, ५४, सूर पु. (सूर्यः) सूरज, रवि
४८। सूरह सक, (भनक्ति) भांगता है, तोड़ता है। 1०६" द्विअहो वि. (स्थितस्य) रहे हुए का. ४.६ । सर्व (तस्य) उसका;
२८७ । । " ठिाह वि. (म्थितानम्) रहे हुओं का, सेल्ल पृ.न. (महल) भाले को
३८७ ।। "ठिदो वि. (स्थितः) रहा हुआ; ठहरा हुआ, सेवइ सक. (सेवते सेवा करता है। ३९६ ।।"ठियं वि. (स्थितम्) रहे हुए को, ठहरे हुए को, १६ । सेसहो वि. (शेषस्थ) बाकी बचे हुए का; ४०१ । " चिट्टिका सं.कृ. (स्थित्वा ठहर करके, १६।। सेहा अक. (नश्यति) नाम करता है, भागला है, " ठाऊण सं.कृ (स्थित्वा) ठहर करके, १६ ।
१७८ "ठवह सक. (स्थापयति) स्थापना करता है, ३५७ । सेहरु पु. (शेखरः) शिखा, चोटी, मस्तक, ४४६ । . " दुइ अक. (उत्तिष्ठते) उठता है, खड़ा होता है; १७ । सो सर्व (सः) बह. २८०, ३२२, ३२३, ३३२, "उट्रिना बि. (उस्थितः) उठा हुमा, खड़ा हुआ; १६ ।
३४०, ३६७, ७०. इत्यादि। ।" उस्थिो वि.(उत्थितः) " " १६ । सोऽपि सर्व. (सोऽपि) यह भी,
'उठिबउ वि. (उत्थितः) " " ४१५, ४१६ सोक्खाई न. (सौस्यानाम् । सुखों का, ३३२।। " उदावियो वि. (उत्थिापितः) उठाया हुआ, १६ । सोभन न (शोभनम) सुन्दरता,
08 ' उपस्तिदे वि. (उपस्थितः) हाजिर हुआ, २९१ । मोमगहरणु न. (सोम ग्रहणम्) चन्द्र ग्रहण,
" पहिलो चि. (प्रस्थितः) जिसने प्रस्थान किया हो वह, १६ सोल्लइ सक. (पचति) पाता है।
६। | "पत्थिा वि. (प्रस्चितः, जिसने प्रस्थान किया हो वह. सक. । क्षिपति) फेंकता है। सोह स्त्री. (शोभाम् ) शोभा को सुन्दरता भो ३८२ ।
" पदवई सक, (प्रस्थापयति , प्रस्थान कराता है भेजता स्खल"पस्खलदि अक. (प्रस्न लति) भूलता है,
पद्रावद सक.(प्रस्थापयति प्रस्थान कराता है भेजता है ३७
" पठावित्रइ कर्म.प्र.(प्रस्थाप्यसे) भेजा हुआ होता है,४२२ "थुण सक. (स्तौति) स्तुति करता है.
“पवित्रो वि. प्रस्थापितः) भेजा हुआ; प्रवर्तित, ,१६ । " थुब्बइ कम, प्र. (स्तूयते) स्तुति की जाती है ४२। स्फुट .... "धुणिजन कम. प्र. (स्तूयते , स्तुति की जाती हैं,२४२ । | "फुट्ट अक. (स्फुटनि) खिलता है. फूटता है, दूरसा है स्त्या --
१७७, २३१, " संखाइ अक. (संस्थापति) आवाज करता है, सघन "फुडद अक. (स्फुटति) खिलता है, फूटता है; टूटता है,
करता है।
"
NI नाराया