Book Title: Prakrit Vyakaranam Part 2
Author(s): Hemchandracharya, Ratanlal Sanghvi
Publisher: ZZZ Unknown

View full book text
Previous | Next

Page 662
________________ मा-माइ अक. (माति) समाता है, ३५०, ४२१ । |" सम्मिमइ-सपीजद अक. (समीलति)यह सकुचाता है, " दवमित्रह अक. (उपमीयते) उपमा दी जाती है.४१८।। २३२। विनिम्मविदु वि. (विनिर्मापितम्) निर्माण किया गया है. | मुगहा पु. (वे.) म्लेच्छ-जाति विशेष, ४.९ । र ४३९ । वेना. माणु पु.न. (मानः माप, परिमाण, ३३०, ३८७ | " मुह सक (मुञ्चति) छोड़ता है, ९१ ३९६, ४१०, ४.८। | " मोतुं हे. कृ. (मोक्तुम् छोड़ने के लिये २.२। "माणि पु.न. (माने) मान-सम्मान पर, ४१८। | " मांत्तना म.कु. मुक्रवा) छोड करके,२१२, २३७ । " माणेग पु. न. (मानेन) मान-सम्मान मे, २७८ । , " मुकाई वि. (मुक्तानाम् ) छुटे हुओं का, ३७० । माणुश (मानुष) मनुष्य, " मात्तव्यं विधि, (मोक्तपः) छोड़ना चाहिये, २१२ । मायहे स्त्री. (मातुः) माता का, जननी के, ३१९ । मुझइ अक. (मुनि) मोहित होता है, २०७, २१७ । मारगाउ वि. (मारणशील; माने के स्वभाव वाला, ४३) पु. (मुब। नाम-विशेष, मारुदिणा पु(पारुतिना) हनुमान से २६० । मुख- सक. (जा-मुण) जानना, २५ । माला स्त्री. (मालती) पुष्प वियोष वाली लता,१६८। |" मुणिज्जई सक (ज्ञायते) जाना जाता है, ३४६ । मालई स्त्री. (मालती) लता-विशेष, ७८: " मुत्र दिलात जाना है, माहट पु. (माघः) वर्ष का ग्यारहो माघ नामक मुणालिअहे स्त्री. (मृणालिकायाः) कमलिनी का, ४४५, मास. ३५७ । । मुणि पु. (मुनि) साधु, ३४१, ४१४ । मिक पु. (मृगांक:) चन्द्रमा, ३७३, ४०१ ।। मणमिम न. (मनुष्यत्त्वम्। मनुष्यपना, ३३० । मित्तडा न. (मित्राणि) मिश्र, दोस्त, ४२२ । | मराग - सक. (मु य ) गूडना, बाल उखाडना दीक्षा मिल-मिलइ अक. मिलति । मिलता है, ३१२। " मिलिज्ज भक. (मिल्यते मिला जाता है, ४३४।।" मण्डह सक. मुण्डयति) बाल उखाड़ता है, दीक्षा देता " मिलिअअक. (मिलित:) मिला, मिलाप हआ, ३८२ । " मिलिनाड नि. (मिलित) मिले, जुड़े, ३३२ । " मारोडअळ वि. (मुण्डित बाल उखाते हुए हैं, ३८५ । मिलाइ अक्र. (म्लायति) छान होता है, १८, २४० । | मुण्द्धमालिए स्त्री. (मुण्डमालिकायां) खोपड़ियों की माला " मिलाइ अक. (म्लायति)म्लान होता है, निस्तेज होता है, २४० । मह स्त्री. (मुद्रा) मोहर-छाप अकित चिह्न, ४०१ मिस्सह सक, (मिश्नपति) मिलाता है. २८ । मह स्त्री. (मुद्राम् ) मुद्रा को, माम मना को, ३०२ । स्त्री. मुग्धा) मोहित हुई नायिका, ३४९,४२२ : " मीलह अक. ( भीलति ) सकुचाता है. मीचाता है । स्त्री. (हे मुग्धे .) हे मोहित दुई नायिका ३७६, २३२ " मेलखि सं.कृ. (मिलित्वा) इकट्ठे होकर के, ४२९ । मः ___ स्त्री. मुग्धया) मोहित हुई नायिका से, ४२३ । " उम्मिलइ अक (जन्मील ते) बह विकसित होता है. मद्धहे. स्त्री. ( मुग्धायाः) मोहित हुई नायिका के, २३२, ३५४।। ३५७। " सम्मीलइ अक. (उन्मौलति) वह प्रकाशमान होता है. | मुद्धहे स्त्री । मुग्धायाः ) मोहित हुई नायिका के, ३५० । " निमिल्लइ-निमीलाइ अक. ( निमोलति) यह आंख | मुरइ प्रक : हापेन स्फुटति मुस्कराता है, १४ मींचता है, २३२ । मसइ सक. (मुपति चोरी करता है, २३९ । " पमिल्लाइ-पमोलइ अक. (प्रमोलति) वह संकोच करता | मसुमूरइ सक (भनक्ति) भोगता है, तोउता है १०६ । है. २३२ । । मुइ न (मुखं) मुंह, बदन, ३३२, ४९, इत्यादि। मील

Loading...

Page Navigation
1 ... 660 661 662 663 664 665 666 667 668 669 670 671 672 673 674 675 676 677 678