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* प्रामात रूपाकरण, roomorroto0000000000+o+ko+00000000000000000000000000000000000.or.net
हिसडा पई पहु बोलियो महु अग्गइ सय - वार ।।
फुट्टिसु पिए पचसन्ति हउं भण्डय ढक्करि- सार ॥११॥ हे सखीत्यस्य हल्लिः ॥ हेल्लि ! म मङ्ख हि पालु ।। पृथक-पृथगित्यम्य जुनं जुः ।।
एक कुडुल्ली पञ्चहि रुद्धी तहं पञ्चहं वि जुनं जुस बुद्धी ॥
बहिणुर तं धरु कहि कि नन्दउ जेत्यु कुडुम्घउं अपणा-छंदउं । १ ।। मूहस्य नालिअ-बढौ ॥
जो पुणु मणि जि खस फमिहूअउ चिन्तइ देई न दम्भु न रूग्रउ ।।
रइ चस-भमिरु कम्म्मुल्लालिउ घ.हिं जि कोन्तु गुणइ सो नालिउ ।।१३" दिवेहि विद्वत्तउ खाहि वढ ॥ नवस्य नवखः नवखी कवि विस-गण्ठि । अयस्कन्दस्य दवडः॥
चलेहि चलन्तेहिं लोनणेहि जे तई दिट्ठा बालि ॥
तहि मयर-द्धय-दडवडउ, पहइ अपूरइ कालि ॥१४॥ यदेश्छुडुः ।। छुडु अग्घइ ववसाउ ।। सम्बन्धिनः केर-तणी ॥
गयउ सु केसरि पिनहु जलु निश्चिन्तई हरिणाई ॥
जसु केरएं हुंकारडएं मुहहुं परन्ति तृणाई ॥१५॥ अह भग्गा अम्हह तणा ॥ मा भैपीरित्यस्य मम्मीसेति स्त्रीलिंगम् ।।
सत्थावत्थई पालवणु साहु बि लोउ करे।।
आदनहं मब्भीसडी जो सज्जणु सो देइ ।।१६।। यद्- यद्-दृष्टं तत्तदित्यस्य जाइ द्विप्रा ।।।
जइ रचसि जाइटिए हिश्रडा मुद्ध- सहाय ।।
लोहें फुट्टणएण जि पणा सहेपई ताब ||१७|| अर्थ:-संस्कृत-भाषा में पाये जाने वाले अनेक शब्दों के स्थान पर अपभ्रंश भाषा में ऐसे ऐसे शब्दों की आदेश प्राप्ति देखो जाती है जो कि मूलतः देशन भाषाओं के और प्रान्तीय बोलि0 के शब्द है । तदनुमार इस सूत्र में ऐसे इकीत शब्दों की आदेश-प्राप्ति बतलाई है जो कि मूलतः देशज होते हुए भी अपभ्रंश-भाषा में प्रयुक्त होते हुए पाये जाते हैं । हिन्दो-अर्थ बतलाते हुए संस्कृत भाषान्तर पूर्वक इनको स्थिति क्रम से इस प्रकार है:-...