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पुरुष
उत्तम
मध्यम
अन्य
संस्कृत भाषा के संज्ञा शब्दों में तथा सर्वनाम वाचक शब्दों में एवं धातुओं में जो विभक्ति - बोधक प्रत्यय जोड़े जाते हैं; उन विभक्ति-बोषक प्रत्ययों के स्थान पर प्राकृत भाषा में आदेश प्राप्ति होती है। तदनुसार उन मूल प्रत्ययों की क्रमिक सूची इस प्रकार से है:
(१) संज्ञा सर्वनाम - संबंधित - प्रत्यय:
विभक्ति
प्रथमा
द्वितीया
तृतीया
'चतुर्थी
पंचमी
षष्ठी
सप्तमी
परस्मैपदी
प्रत्यय-बोध
एक वचन
मि
सि
ति
>>>O<<
एक वचन
सि
बहु वचन
मस्
थ
अन्ति
अम्
टा ( आ )
ङ (ए)
इस (अस् )
स् (अस्)
(इ)
(२) धातु- प्रत्यय- वर्तमान-कालिक:
पुरुष
उत्तम
मध्यम
वन्य
=
श्रात्मनेपदी
एक वचन
बहुवचन
जस् (अस्)
शस् (अस्)
(भिस्)
इ
से
ते
भ्यस्
भ्यस्
आम्
बहु वचन
महे
ध्वे
अन्ते
नोट:- (१) प्राकृत भाषा में द्विवचन के स्थान पर बहुवचन का ही प्रयोग किया जाता है, अतः यहाँ पर द्विवचन संबंधी मूल संस्कृत प्रत्ययों को लिखने की आवश्यकता नहीं है; यह ध्यान में रहे।
.
(२) वर्तमान काल के अतिरिक्त शेष काल-बोधक तथा विभिन्न लकार-बोधक संस्कृत प्रत्ययों के स्थान पर जनरल रूप से और समुच्चय-रूप में प्राकृत भाषा में विशिष्ट प्रत्ययों की संप्राप्ति प्रदर्शित की गई है, अतः उन विशिष्ट और अवशिष्ट लकारों के संस्कृत प्रत्ययों की सूची भी यहाँ पर नहीं लिखी है ।
(३) "युष्मद् और अस्मद् " सर्वनामों के तथा अन्य सर्वनामों के सिद्ध हुए विभक्ति प्रत्यय सहित अखंड पदों के स्थान पर प्राकृत भाषा में विशिष्ट आदेश प्राप्ति होने का संविधान है, तदनुसार उन मूल संस्कृत - सर्वनाम - संबंधी पदों का स्वरूप संस्कृत-व्याकरण प्रत्थों से जान लेना चाहिये ।
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