Book Title: Prakrit Vyakaranam Part 2
Author(s): Hemchandracharya, Ratanlal Sanghvi
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 624
________________ [ १८ ] सुप्पाहा, सुष्षणही स्त्री. (शूर्पणखा) एक स्त्री का नाम | ३-३२। ई. सर्व. (अहम् । मैं, ३-१०५। सुई. न. (सुखम्। सुख, आराम, चन, ३ २६, ३०। । इत्या पुं. इस्तौ) दो हाथ, ३-१३० । सूसहरे अक. (शुष्यति) सूखता है, ३-१४२ । हत्थुण्णामिश्र वि. (हस्तोन्नामित) जिसने हाथ पर झुका से सर्व. (अस्य इसका; ३-८१, १८० । रवा हो वह, ३-७० । मी सर्व. (स: बह; ३-३, ५६, ८६, १४८, १६४ । इणि पु. (हरिण) हरिण, मृग, ३-1601 सोचाइ अक. (शोचति, वह शोक करता है, ३-७० । हरिहगे, पु. ( हे हरे ! } हे हरि ! हे महादेव. २-३८ । हरिण! पु.(ह हरिणादू! हे चन्द्र. ३ १८० । सोच्छं भविः सः (शोमामि। मैं सुन गा. ३-१० , हरिशाश्वं पु. (हरिणाधिपम्) सिह को. मृगराज को. १७२ । -१८ स्था इलहा स्त्री. हरिद्रा, हल्दी. औषधि-विशेष २-१४ । चिद्रइ अक. (तिष्ठति बह टहरता है, ३-७९१ लहरो स्त्री. (हरिद्रा) हल्दी. औषधि-विशेष. :-३४ । ठासि अझ निष्ठसि) तू ठहरता है. ३-' ५। । हस-(धातु- हंसना) रूपावलि-३-२८.२ ६. ५३९. ठाइ अक. (तिष्ठति : वह ठहरता है, ३-१४५ । ठामो अक. (तिष्ठामः) हम ठहरते हैं, ३. १५५ । १५६. १५७, ५८. १५९. १६०, १६६. १६९, ७६, १७५. १७७. बिह अक. (तिष्ठषः अथवा तिष्ठत) तुम ठहरते १७८ १८१. १८ । हो तुम ठहरो, ३-९ । इसह अक. हसति) वह हंसता है; ३-८७ ।। चिट्ठन्ति अक. (तिष्ठन्ति) वे ठहरते हैं, ३-२०, हासिमा प्रेर (हाशिता) हँसाई गई है. हॅसाई हुई। २६, २८, ५०, ५२ ५५, ५६, १२२, १२४ । ठासी, ठाहा, ठाहीन, अक, (अस्थात्, अतिष्ठन् हाहाण पु. (हाहानाम्) (हाहाभ्य:) गन्धर्व जाति के तस्यौ) वह ठहरा था, वह ठहरा, वह ठहर चुका था, देवों का गन्धर्व जाति के देवों के लिये ३-१४ । २९ । हिप्रय न. (हृदय) हृदय,२-१४५ । ठाही, अक. (तिष्ठ, तिप्ठः, तिप्ल्याः ) तू टहर, एण न. (हृदयेन) हदय से, ३ ८५ । -१७५ । इन्ति अक. (भवन्ति) वे होते हैं, ३२६ । ट्रिश्रा, वि. (स्थिता) ठहरी हुई. ३-७० । हश्यं वि. (हृतम्। होमा हुआ, हवन किया हुआ, ३-१५६ । ठि वि', स्थितम् रहा हुआ. :-२२, ६०, होइ अक. (भवति) वह होता है, ३ . १४५ । १०१, ११५, ११६, १६८, १११ १२९ । होजज विधि. अक. भवतु) वह होव, ३-१५९, १६५, ठिया वि. (स्थिताः) रहे हए, ३-१२०, १२।।

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