Book Title: Prakrit Vyakaranam Part 2
Author(s): Hemchandracharya, Ratanlal Sanghvi
Publisher: ZZZ Unknown
View full book text
________________
[ २३ ।
इदा
भायम्बद अक. (वेरते) कांपता है;
१४७।
अ. (इतः) इससे, इस कारण, पायर पु. (आदरः। सन्मान. आदर; ३४१ । | इध अ. (इह) यहाँ पर
२६८। ,, पायरेण पु. (आदरेण) आदर से;
इन्दनील पु. (इन्द्र नीलः) नीलम, रत्न विशेष ४४४ । पायुधं न. (आयुधम् । शस्त्र को
३०४।
इमु सबं. (इदम् । यह, प्रारभइ सक (आरभते) वह प्रारम्भ करता है। इष्-इच्छह सक. (इच्छति; वह इच्छा करता है २२५ ।
इच्छह सक. (इच्छथ ) तुम चाहते हो, ३८४ । श्रारम्भइ सक्र. (आरभते) वह प्रारम्भ करता है: इमल सक. (इच्छथ) तुम चाहते हो, ३८४1
१५५ । । एक्छण न. (एष्ठम् ) इष्ट लक्ष्य को, प्रारह सक. ,आरोहति) चढ़ना है २०६ : इट्रो वि. (इष्टः, प्रिय, प्यारा,
३५८. आरोह अक. उल्लसति) प्रसन्न होता है २०२। इह . इह) यहाँ पर, २६८, ४१९: बागेला सक. (पृचति) न्ह् हबट्टा करता है, १०२ । आलधगु न. (आलपनम) सभाषण बातचित, ४२२ । थालिहइ सक, (स्पृशति) छूना है १८२ । | ईक्ष-पदिक्खइ-सक. (प्रतीक्षते । राह देखता है १९३ । पातु न. (अलोकम् 'झूठ, आरोप, ३७९ ४२२ । | ईदिशाह वि. (ईदृशानाम् ) इन जैसों का, २९९ । पालुखाइ सफ. (स्पृशति) छूता है १८२. २०८ ।
[उ] श्राव स्त्री. (आपद् । आपत्ति, ४०२, ४१९। श्रावह अक. (आयाति) आता है ३६७। ! उन्म अ. (पश्य) गोता को अपनी ओर मुख करने पावट्टा अक्र. (आवर्तते लौटना है। फिरता है; ४१६ । ।
के लिये कहना, ३०६ । श्रावलि स्त्री. (अावलिः, पंबित, श्रेणी
उही पु. (उदधिः) समुद्र,
३६५ । श्रावास न. (भावास) निवास स्थान; १४२। | उमाकरइ अक. (उत्तिष्ठति) खड़ा होता है, उठता है, आवासिउ वि. (आवासितः) बसा हुआ; ३५७ । यात स्त्री (नाशा आशा; उम्मेद; ३ । उक्कुप्तइ सक. (गच्छति) जाता है; १२ । आसंघइ सक, (संभावमति। यह संभावना करता है; ३५ । उकोसं वि. (उत्कृष्टम्) अधिक से अधिक, २५८ । बारह सक. (कक्षिति) वह इच्छा करता है; १९२। उलिवइ सक. (उत्क्षिपेति) फेंकता है, १४। बाहम्मद अक.(आगच्छति) यह आता है;
उक्खु डइ सक. (तुडति) यह तोड़ता है। ११६ । बाहोड सक्र. (ताड़यति, वह पीटता है; २७ । उमाइ सक. (उद्घाटयति) वह खोलता है, ३ ।
उम्पहइ सक.(रचयति) बह रखता है, बनाता है९४१ [३]
उग्घुसइ सक. (माष्टि) वह साफ करता है १०५ इ अ. (अपि भी; ३८३, ३८४, ३९०, ४३९ । उंबद अक. (निद्राति) वह निद्रा लेता है, १२। इ-एइ अक. (एति, आता है. आती है. (आयाति) उच्चुषइ सक. (चटति) वह चढ़ता है, २५९ ।
| उच्छा पु. (उत्संगे) मध्य भाग में, गोद में ३३६ । " एसी अक. (एण्यति) भावंगा, ४१४।
४१४ ।। उछल्लन्ति मक (उच्चलम्ति) उछलते हैं, २२६ । "एन्तु अक. (ऐप्यत आया हुआ होता, ३५१।। उजाण न. (उद्यान) बाग, बगीचा, उपवन, ४२२ । " श्रा-एदु अक, (एतु) जावें, २६५, ३०२। । उज्जुन वि. ऋजुक सरल, निष्कपट, सीधा ४१२ । इअरु वि. (इतर दूसरा,
सजेमिति स्त्री. (उज्जयिनीम् ) उज्जयिनी को, ४४२ । इण सर्व. (इदम् यह,
२७१। उझ उझिनषि (उज्झित) त्यामा हुमा, ३०२ । इत्तउं वि. (इयत्) इतना अधिक,
३९१ । । उट्ठई कति
उदृह अक. (उतिष्ठति) वह खड़ा होता है । इत्थ भ. अत्र) यहां पर, ३२३। | जट्टकमाइ सक. (माच्छाचते) हक दिया जाता हैं ३६५ ।
पहाता
१६२।।
ताह

Page Navigation
1 ... 627 628 629 630 631 632 633 634 635 636 637 638 639 640 641 642 643 644 645 646 647 648 649 650 651 652 653 654 655 656 657 658 659 660 661 662 663 664 665 666 667 668 669 670 671 672 673 674 675 676 677 678