Book Title: Prakrit Vyakaranam Part 2
Author(s): Hemchandracharya, Ratanlal Sanghvi
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 632
________________ अ. (कुतः) कहाँ से? ४५६, ४८|| कन्तप्पो पु. (कन्दर्पः) कामदेव, कंखइ सक. (कोसति। इच्छा करता है, ९२ । | कन्ति स्त्री./कान्ति) लावण्य, कान्ति, फन ली. न. (कलोः) कंगु नामक पौधे का ३६७।। " कन्तिए श्री. (कान्या) कांति से, लावण्य से, ३४९ । फच्चु सर्व. (कच्चित् । कोई ३२९1 | कन्तु वि. (कान्सः) सुन्दर, कातिवाला, ३४५, ३५११ फज्ज न. कार्य काम, " पु. कान्तः) पति, ३५७, ३५८, ६६४, ३८३, कजु न. (कार्य) काम, ३५३। कज न. (कार्यण) काम से, कन्तस्य पु. (कान्तस्य) पति के लिये, ४४५ ॥ कळचण न. (काञ्चन) सोना, स्वर्ण, " कन्तहो । कान्तस्य) पतिका, ३७६, ३८९, कचुहश्रा पु. (कमन्चुकिन्) अम्त.पुर का चपरासी, ३९५, ४१, ४२९ । २६३, ६०२।। कपिजह सक. (कलप्यते . कल्पना की जाती है. ३५७ । कञ्चमा प. (कम्यूक । चोली, स्त्री की कुर्ती, ४३१ । | कमल न. (कमलं : कमल, ३०८,३३२,३९७,४१४ । कनका स्त्री. (कन्यका) लड़की, कुमारी, २९३ ६०५। | कमलाई न, (कमलानि), कमल, कमलों को, ३४३। करि अ. (आश्चर्यम्) आश्चर्य की बात है कि, ५० कमवस अक. स्वपिति) सोता है, कटारह स्त्री. (टारिकाय म्) कटारी, शारियोग :४५ । कडु वि. (क) कडुआ, ३३६ ।। " कम्पेइ अक, (कम्पते) कांपता है. ४६ कदइ सक. (पवध्यते) क्वाथ करना, उबालना, १९, | " कम्पिता वि, (पिता) कॉपी हुई, ३६। " अगुकम्पणीया वि. (अनुकम्पनीया क्या कदइ सक. (कर्षति) म्यान में से तलवार खींचना, के योग्य, २६.1 १८७ । कम्मइ सक. (क्षुर्रकरोति) हजामत करता है, ७२। कर सक. (कर्षामि) खीच लाता हूँ ३८५। कम्मवई सक. (उपभुनक्ति) वह उपभोग करता है,१११। कण्ड न. (कनके) स्वर्ण में, ४.४। कम्मोह पु.न. (कर्मणाम्) को का, " कम्माई पु. (कर्मणाम् ) कर्मों का, ३००। कणा सक. (कणति) वह आवाज करता है, २३९ ।। करिणत्री ११०। फम्मेह . (कणिका, एक कण भी सक. (भुनक्ति) वह खाता है, कणिधारोपु. (कणिकार:) कनेर, वृक्ष विशेष, ३९६ । कयन्ते पु. (कृतान्त.) यमराज ३०२। कयम्बो पु. (कदम्र:) वृक्ष-विशेष, कण्ठि पु. (कण्ठे) गले में, ४.०,४४४, ४४६ । " क्यम्बु पु.(कवम्ब," " ३८७। कराड पु.नं. (कणे) कान में ४३.४३३ । कयरो सर्व (कतरः) कौन ? करणहि पु. म. (कर्णेषु) कानों में, करकतसिनानेन वि. (कृतस्नानेन, जिसने स्नान करोमि --- सक. (करोमि) मैं करता हूँ, कर लिया है उसके द्वारा, " कलेमि - सक्र. (करोमि) " " " २८७ । कथ " करेइ सक- (करोति) वह,करता है ३३७, " कह सक.(कथयति) कहता है, ४४,४२०, ४२२ । कवेदि-कहदि सक, (कथयति) कहता है ६७ । करह सक. करोति) वह करता है, १५, मधेहि सक. (कथयति) तू कहता है, ३०२। २३४, २३९ ३३८ । कधिदु वि. (कथितम् ) कहा गया फरदि सक. (करोति वह करता है' ३३० कषितन सं. कृ. (कथयित्वा) कहकर के, ११२ | " करन्ति सक. (कुर्वन्ति) वे करते है, ३७६, कत्था क. भा. प्र.(कथ्यते कहा जाता है, २४९ । कहिज्जह " (कथ्यते कहा जाता है, २४९ । | "काहि सफ. (कुर्वन्ति) वे करते हैं, ३८२, म.,कथम्) किस प्रकार से, २९७, ३ ३ ।

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