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* प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित * •••••ro+m...0+00000000000000000000000000+++0000000..........
सूत्र के अन्त में 'सिद्धम् ऐसे मंगल पाचक पद को रचना 'मंगलाचरण की दृष्टि से को गई है। इससे यही प्रतिध्वनित होता है कि इस प्रन्थ के पठन-पाठन करनेवालों का जीवन दीर्घायुषाला और स्वस्थ रहनेवाला हो तथा वे अपने जोवन में अभ्युदय अर्थात् सफलता तथा यश प्रान करें। आचार्य हेमचन्द्र ऐसी पवित्र-कामना के साथ मन अत्युत्तम प्रन्थ को मामिले हैं !
वृत्ति में दी हुई गाथा का पूरा अनुवाद क्रम से यों हैं:संस्कृत:--अधा स्थित -सूर्य-निवारणाय; छत्रं अधः इव वहन्ति ।।
___ जयति सशेषा वाह-वास- दोस्विप्ता पृथिवी ॥१॥ __हिन्दी:-वराह-अवतार के तीक्ष्ण श्वास से दूर फेंकी हुई पृथ्वी शेष-नाग के फणों के साथ जय शील होती है। नीचे रहे हुए सूर्य के कारण से उत्पन्न होने वाले ताप को गेकने के लिये मानों शेष-नाग के फणों को ही छत्र रूप में परिणत करती हुई एवं इन्हें नीचे वहन करती हुई जय-विजयशील होती है। ॥४-४४८ ॥
इत्याचार्य श्री हेमचन्द्र विरचितायां सिद्ध इम
चन्द्रामिधान-स्वोपज्ञ-शब्दानुशासनवृत्तावष्टमस्याध्यायस्य चतुर्थः पादः
समाप्तः ॥
इति श्री हेमचन्द्र प्राचार्य द्वारा बनाई गई "सिद्ध हेमचन्द्र नामक प्राकृत-व्याकरण समान हुई। इसमें आठवें अध्याय का चौथा पाद भी ममाप्त हुआ। इसको वृति भी मूल
ग्रंथ कार द्वारा ही बनाई गई है।
समाता चेयं सिद्ध हेमचन्द्रशब्दानुशासनवृतिः
"प्रकाशिका" नामेति ।
मूल ग्रन्थकार द्वारा ही इस अष्टाध्यायी "सिद्ध हेमचन्द्र" नामक व्याकरण पर जो वृत्ति अर्थात् टीका बनाई गई हैं; उसका नाम "प्रकाशिका" टीका है; वह भी यहाँ पर समाप्त हो रही है।