Book Title: Prakrit Vyakaranam Part 2
Author(s): Hemchandracharya, Ratanlal Sanghvi
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 602
________________ [ ५६२] * पाकत व्याकरण . mammi...rnerrearrrrrrrrrrrore शेष संस्कृतवत् सिद्धम् ॥ ४-४४८ ॥ शेष पदत्र प्राकृतादि भाषासु अष्टमे नोक्तं तत्सप्ताध्यायी निबद्ध संस्कृतवदेव सिद्धम् ॥ हेतु-हिय-सूर-निवारणाय, छत्तं अहो इव वहन्ती । जयइ ससेसा वराह-सास-दुरुक्खुया पुहवी ॥१॥ अत्र चतुर्था प्रादेशो नोक्तः स च संस्कृतवदेव सिद्धः । उक्तमपि क्वचित् संस्कृतवदेव भवति । यथा प्राकृत उरस् शब्दम्य सप्तम्येक बचनान्तस्य उर उरम्मि इति प्रयोगी भवतस्तथा कचिदुरसीत्यपि भवति । एवं सिर । सिरम्मि सिरसि ॥ सरे । सरम्मि। सरसि । सिद्धग्रहणं ममलार्थम् । ततो घायुष्मच्छोतृकताभ्युदयश्चेति || अर्थ:-इस बाठवें अध्याय में प्राकृत, शौरसेनी आदि छह भाषाओं का व्याकरण लिखा गया है और इन भाषाओं की विशेषनाओं के साथ-साथ अनेक नियम तथा उपनियम समझाये गये हैं। इनके अतिरिक्त यदि इन भाषाओं में संस्कृत-भाषा के ममान पदों की, प्रत्ययों को, अध्ययों की आदि बातों की समानता दिखलाई पड़े तो उनकी सिद्धि संस्कृत-पाषा में उपलब्ध नियमोपनियों के अनुसार समझ लेनी चाहिये । तदनुसार मंस्कृत-भाषा सम्बन्धी सम्पूर्ण व्याकरण की रचना इस अाठवें अध्याय के पूर्व रचित सातों अध्यायों में की गई है। ऐसी भलामण अन्धकार इप्त सूत्र की वृत्ति में कर रहे हैं। सो ध्यान में रखी जानी चाहिये । प्रन्यकार कहते हैं कि 'प्राकृत आदि छ। भाषाओं से सम्बन्धित जिस विधि-विधान का बल्लेख इस आठवें अध्याय में नहीं किया गया है, उस पम्पूर्ण विधि विधान का कार्य संस्कृत व्याकरण के अनुमार ही सिद्ध हुधा जान लेना चाहिये।' जैसे:-अधः स्थित सूर्य-निवारणाय= हेट-ट्ठिय-सूरनिवारणाय-नीचे रहे हुए सूर्य की गरमी को अथवा धूप को रोकने के लिये। इस उदाहरण में 'निवारणाय' पद में संस्कृत भाषा के अनुसार चतुर्थी विभक्ति के एक वचनार्थक प्रत्यय 'पाय' की प्राप्ति हुई हैं। इस प्रार प्रत्यय 'श्राय' का संविधान प्राकृत-भाषा में कहीं पर भी नही है। फिर भी प्राकृत-भाषा में इसे अशुद्ध नहीं माना जाता है इसलिये इसकी सिद्धि संस्कृत भाषा के अनुमार कर लेनी चाहिये । प्राकृत. भाषा में छाती-अर्थक 'उर शब्द है जिसके दो रूप तो सप्तमी विभक्ति के एकवचन में प्राकृत भाषा के अनुहार होते हैं और एक तृताय रूप संस्कृत भाषा के अनुमार भी होता है । जैसे:-उरसि = उरे और उसम्म अथवा उरसि - छाता पर छाती में । दूमग उदाहरण यों है.-'शरस= सिरे और सिम्मि अथवा इससि = मस्तक में अथवा मस्तक पर । तीसरा उदाह या वृत्ति के अनुसार इस प्रकार से है:सर्रास = सरे और मम्मि अथवा सरसि = तालाब में अथवा तालाब पर । यो संस्कृत भाषा के अनुसार प्राकृत आदि भाषाओं में उपलब्ध पदों का सिद्धि संस्कृत के समान हो समझ कर इन्हें शुद्ध ही मानना चाहिये।

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