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%2 प्राकृत व्याकरण*
पहुँचाने की कामना ही करते हैं । ( यही वृत्ति सज्जन-पुरुषों को भी दुर्जन पुरुषों के प्रति होतो है ) । इस गाथा में डालई' शब्द पाया है, जोकि मूल रूप से स्त्रीलिंगवाला है फिर भी उसका प्रयोग यहाँ पर नपुंसकलिंग के रूप में कर दिया गया है । यो अपभ्रश-भाषा में अनेक स्थानों पर पाई जाने वाली लिंग सम्बन्धी दुर्व्यवस्था की कल्पना स्वयमेव कर लेनी चाहिये ।। ४-४४५ ॥
शौरसेनीवत् ॥४-४४६॥ अपभ्रंशे प्रायः शौर-सेनीवन कार्य भवति ||
सीसि सेहरु खणु विणिम्मविदुः खणु कपिठ पालम्वु किदु रदिए । विहिदु खणु मुबह-मालिए' में पथए।
तं नमहु कुसुम-दाम-कोदण्डु कामहो ॥१॥ अर्थ:-शौरसेनी भाषा में व्याकरण-संबंधित जो नियम-उपनियम एवं संविधान है; व सम प्रायः अपभ्रंश-भाषा में भी लागू पड़ते हैं । यो शौरसेनी-भाषा के अनुमार प्रायः अनेक कार्य अपभ्रश-भाषा में भी देखे जाते हैं। जैसे:
(१) निवृति = निव्वुदि= प्रारम्भ-परिग्रह से रहित वृत्ति को। (२) विनिर्मापितम् - विणिम्मविदु-स्थापित किया हुआ है, उसको । (३) कृतम् - किदु = फिया हुमा है। (४) स्त्याः = रदिए-कामदेव को स्त्री रति के। (५) विहित - विहिदु =किया गया है। इन उदाहरणों में शौरसेनी-भाषा से संबंधित नियमों के अनुसार कार्य हुआ है। पूरी गाथा का अनुवाद यों है:
संस्कृतः-शीर्ष शेखरः षणं विनिमोपितम् ॥
तणं कण्ठे प्रालम्यं कृतं रस्याः ॥ विहितं पण मुण्ड-मालिकायां ॥ तनमत कुसुम-दाम-कोदण्डं कामस्य ॥१॥
हिन्दी:-कामदेखने नीलकण्ठ भगवान शंकर को अपनी तपस्या से बिगाने के लिये पुरुषों से