________________
* प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित
[ ५८७ ]
जणु ।। निरुवम-रसु पिएं पिएवि जणु ॥
अर्थ-'के समान' अथवा 'के जैसा' अर्थ में संस्कृत भाषा में 'इव' अध्यय-शरद का प्रयोग होता है; तदनुसार इस 'इव' अव्यय शब्द के स्थान पर अपभ्रामाषा में छह शब्दों की श्रादेश प्राप्ति होती है । जोकि क्रम से इस प्रकार है:--(१) नं. (२) नर, (३) नाइ, (४) नावइ, (५) जणि और (६) जणु । इनके उदाहरण यों है:-(१) पशुरिष = नं पसु = पशु के समान, पशु के जैसा । (२) निवेशितः इव = नउ नियसिउ- स्थापित किये हुए के समान । (३) विलिखितः इध- नाइ लिहित = पत्थर पर) खुदे हुए के समान । (४) प्रतिविम्बितः इस = नावइ पडिविम्बिउ =अतिछाया के समान । (५) स्वभावः इध = जणि सहजु= स्वभाव के ममान और (६) लिखितः इव = जणु लिहिउ = लिखे हुए के समान | वृत्ति में आये हुए उदाहरणों का अनुवाद क्रम से यों हैं:--
(१) संस्कृतः-मल-गदै इन शशि राह कुरुतः-नं मल-जुज्झु समि-राहु करहिं -- पहलवानों की लड़ाई के समान चन्द्रमा और गहू दोनों ही युद्ध करते हैं । यहाँ पर 'इच' अर्थ में आदेश-प्राप्त शब्द 'न' का प्रयोग किया गया है। __ (२) संस्कृत:-रव्यस्तमने समाकुलेन कण्ठे वितीर्णः न छिमः ॥
चक्रण खण्डः भृणालिकाया: ननु जीवार्गलः दत्तः ॥१॥ हिन्दीः- सूर्य-देव के अस्त हो जाने पर घबड़ाये हुए चल्वा नामक पक्षी के द्वारा कमलिनी का टुकड़ा ययपि मुख में ग्रहण कर लिया गया है; परन्तु उसको गले के अन्दर नहों उतारा है; मानो इम बहाने ससने अपने जीवन को रक्षा के लिये 'असला-भागल' के समान कमलिनी के टुकड़े को धारण किया हा। इस गाथा में 'इव' अर्थक द्वितीय शब्द 'ल' को प्रदर्शित किया है ।। (३) संस्कृतः वलयावलोनिपतनभयेन, पन्या ऊर्ध्व-भुजा याति ॥
वल्लभ विरह-महाहदस्य स्ताथं गवेषतीव ॥२॥ हिन्दी:-यह धन्य-स्वरूपा सुन्दर नायिका 'अपनी चूड़ियों कहीं नीचे नहीं गिर जाय' इस आशंका से अपनी भुजा को ऊपर उठाये हुए हो चलता है। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि मानो वह अपने प्रियतम के पियोग रूपी महाकुंद्र के तलिये की स्थिनि का अनुसंधान कर रही हो । यहाँ पर 'इव' के स्थान पर प्रादेश-प्राप्त सृतीय शब्द 'नाई' को प्रयुक्त किया गया है ॥२॥ (४) संस्कृतः -प्रेक्ष्य मुखं जिनवरस्य दीर्घ-नयनं सलावण्यम् ।।
ननु गुरु मत्सर मरितं, ज्वलने प्रविशति लवणम् ॥३॥