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*प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित *
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अम्माडि पच्छायावडा पिउ कलहिउ विपालि ॥
चई वित्ररी बुद्धडी होइ विणासहो कालि ॥१॥ श्रादि-ग्रहणात् खाई इत्यादयः ॥
अर्थ:-अपभ्रंश भाषा में ऐसे अनेक अध्यय प्रयुक्त होते हुए देखे जाते हैं, जिनका कोई अर्थ नहीं होना है। ऐसे अर्थ-होन को श्रव्यय यहाँ पर लिखे गये हैं; जो कि इस प्रकार से हैं:-(१) पई
और (२. वाई । यों अर्थ तीन अन्य अन्यों की स्थिति को भी समझ लेना चाहिये । उदाहरण के रूप में ' बई' अव्यय का प्रयोग वृत्ति में दी गई गोथामें किया गया है। जिसका अनुवार इस प्रकार से है:संस्कृत:----अम्ब ! पश्चातापः प्रियः कलदायितः विकाले ॥
(नून) विपरीता बुद्धिः भवति विनाशस्य काले ॥१॥ हिन्दी:-हे माता ! मुझे अत्यन्त पश्चात्ताप है कि मैंने समय और प्रसंग का बिना विचार किये हो ( पति-समय का खयाल किये बिना ही) अपने पति से झगड़ा कर डाला | सप है कि विनाश के समय में (विपत्ति 'माने के मौके पर ) बुद्धिमी विवीत हो जाती है, उल्टी हो जाती है ॥१२इस गाया में श्रथ-हान अव्यय-शब्द 'घई' का प्रयोग किया गया है ! 'दादि' शब्द के कथन से अन्य अर्थ होन अव्यय शब्द 'खाई' इत्यादि के सम्बन्ध में भी समझ लेना चाहिये । ऐसे शब्दों का प्रयोग पाद-पूर्षि के रूप में भी देखा जा सकता है ।।४-४२२||
तादर्थे वे हिं-तेहि-रेसि-रेसिं-तणेणाः ॥ ४-४२५॥ अपनशे तादयें धोत्ये केहि तेहि सि सि तसेण इत्यते पञ्च निपाताः प्रयोक्तध्या: ।।
ढोला एंह परिहासडी अइ भण कवहिं देसि ||
हउँ झिज्जाउँ त उ केहिं पिन ! तुहुँ पुणु अत्राहि रेसि ॥ एवं तेहि रेसि मावुदाहायों । चहत्तणहो तणेख ॥
अर्थ:-'तार्थ' अर्थात् ' के लिये' इस अर्थ को प्रकट करने के लिये अपनश-भाषा में निम्नोक्त पांच अध्यय-शब्बों में से किसी भी एक अव्यय शब्द का प्रयोग किया जाता है । (१) केहि के लिये, (२) तेहिं के लिये, (३) रेसि के लिये, (४) रेसि = के लिये, और (५) तरणेण के लिये । उदाहरण क्रम से इस प्रकार है:
१ स्वर्गस्वार्थे स्वं जीव दयां कुरु = सम्हो केहि करि जीव-दय = देवलोक के लये औकएया को करो।