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* प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित *
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हिन्दी:- तुम्हारे संदेशे से क्या (लाभ) है ? जबकि ( संदेशा मात्र से तो ) तुम्हारे समागम की प्राप्ति (परसर में मिलने से होने वाले लाभ की प्राप्ति हो) नहीं होती है। जैसे कि हे प्राणपति प्रियतम ! स्वप्न में जल-पान करने से क्या प्यास मिट सकती है ? इस गाथा में 'युष्मदीयेन' पद के स्थान पर अपभ्रंश भाषा में 'तुहारेण' पद का प्रयोग करके 'डार = आर' प्रत्यय की साधना की गई है || १ ||
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(२) पश्य अस्मदीयम् कान्तम् = दिक्खि अम्हारा कन्तु = हमारे पति को देखो। यहाँ पर भी 'अस्मदोयम्' के स्थान पर 'अम्हारा' पद को प्रस्थापित करके 'डार = श्रर' प्रत्यय को सिद्धि की गई है। (३) भगिनि ! अस्मदीयः कान्तः = ब = बहिण ! महाश कन्तु हे बहिन ! मेरे पति । इस उदाहरण में 'मद्दारा' पद में 'अर' प्रत्यय आया हुआ है । यो सर्वत्र 'डार = श्रार' प्रत्यय की स्थिति को समझ लेना चाहिये ।। ४-४३४ ।।
अतोर्डेत्तलः ॥ ४-४३५ ॥
अपभ्रंशे इदं - किं-यत्-तद्-एतद्भ्यः परस्य अतोः प्रत्ययस्य डेत्तुल इत्यादेशो भवति ।। एतुलो | केतुला । जेत्तुली । तेतुलो । एचुलो ॥
अर्थः - संस्कृत - पर्वनाम शब्द 'इदम् किम, यत्, तत् और एतत्' में जुड़ने वाले परिमाण वाचक प्रत्यय 'अतु = अत्' के स्थान पर अपभ्रंश भाषा में 'बेत्तुल' प्रत्यय को आदेश प्राप्ति होती है। श्रादेश प्राप्त प्रत्यय 'देशल' में 'खकार वरण' इत्संज्ञक है; तदनुसार इस 'डेत्तुन = एसूल' प्रत्यय की प्राप्ति होने के पूर्व उक्त सर्वनामों में रहे हुए अन्त्यय इलन्त व्यञ्जन का तथा उपान्त्य स्वर का लोप हो जाता हैं और स्पधात् हो शेष रूप से रहे हुए इलन्त शब्दों में इस 'एल' प्रत्यय की संप्राप्ति होती है । जैसे कि: - ( १ ) इयत् = एत्तुलां इतना (२) कियत् केत्तुलो = कितना । (३) यात्रत् = जेत्तुजो = जितना । (४) नात्तेत्तलो उतना और (५) एतावत् पत्तलो इतना ॥ ४०४३५ ॥
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त्रस्य डेत्तहे ॥ ४-४३६ ॥
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अपभ्रंशे सर्वादेः सप्तम्यन्तात् परस्य त्र प्रत्ययस्य डेत इत्यादेशो भवति || - एतहे ते वारि घरि लच्छि निसएठुल धाइ ॥ पिच-पड व गोरडी निच्चल कहिं विन ठाई ॥ १ ॥