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* ग्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित * mo....000000000000000000000000000000000000000000000000rorotomorn0
(२) एका कुटी पञ्चभिः रुद्धा = एक कुडुल्लो पञ्चहिं रुद्धी - एक छोटी सी झोपड़ी और वह भी पाँच के द्वारा सधी हुई हैं ।। ५-४२१ ।।
धान्तान्ताड्डाः ।।४-४३२ ॥
अपभ्रंशे स्त्रियां वर्तमानादप्रत्यगान्त-प्रत्ययान्तात् डा प्रत्ययो भवति ॥ ध्यपवादः ।।
पिउ अाइउ सुय वत्तडी झुणि कन्नडइ पइट्ठ ।।
तही विरहदो नासन्त श्रहो धूलडिया चि न दिड ॥१॥ अर्थ:-अपभ्रंश भाषा में स्त्रीलिंग में रहे हुए संज्ञा शब्दों में स्वार्थिक प्रत्यय लगने के पश्चात् (स्त्रीलिंग-बाधक प्रत्यय ) 'डा - श्रा' प्रत्यय को शप्ति (भी) होती है । 'दा' प्रत्यय में अवस्थित 'टकार' वर्ण इत्संज्ञक होने से स्वार्थिक प्रत्यय से मंयोजिन श्रीलिंग शब्दों के अन्त्य स्वर का लोप होकर तत्पश्चात् हो 'श्रा' प्रत्यय जुड़ता है । यह 'डा= श्रा' प्रत्यय उपरोक्त सूत्र-सख्या ५-४५१ के प्रति अपनाद-सूचक स्थिति वाला है। जैसे:--
(१) वार्तिका वातडिया = बात ।
(२) धूलिः = धूलडिश्रा = धूलि-रज का । इन उदाहरणों में 'डा= श्रा' प्रत्यय की संप्राप्ति देखी जाती है। गाथा का पूग अनुवाद यों हैं:-- संस्कृत:--प्रियः आयातः, श्रुता वार्ता, ध्वनिः कर्णे प्रविष्टः ॥
तस्य विरहस्य नश्यतः, धूलिरपि न दृष्टा ॥१॥ हिन्दी:-प्रियतम प्राणपत्ति लौट आये हैं। ऐसे) समाचार मैंने सुने हैं। उनको प्रावाज भी मेरे कानों में पहुँची है । ( इस प्रकार की परिस्थिति उत्पन्न होने पर) उनके विरह से उत्पन्न हुए दुख के नाश हो जाने से ( अब उस दुःख को ) धूलि भो ( अर्थात् सामान्य अंश भो ) दृष्टि-गोचर नहीं हो रहा है। (अब वह दुःख पूर्णतया शान्त हो गया है ) ॥ ४-४३२ ।।
अस्येदे ।। ४-४३३ ॥ अपभ्रंशे स्त्रियां वर्तमानस्य नाम्ना योकारस्तस्य प्रकारे प्रत्यये परे इकारो भवति ।।
धूलडिश्रा वि न दिइ ॥ स्त्रियामित्येव । झुणि कन्नडइ पइट्ठ ।।
अर्थ:--अपभ्रश-भाषा में स्त्रीलिंग वाले संज्ञा शब्दों के अन्त में अवस्थित्त 'अकार' को 'श्रा' प्रत्यय की प्राप्ति होने के पूर्व 'इकार' वर्ण की प्राप्ति हो जाती है । अर्थात् अन्स्य प्रकार 'श्रा' के पहिले