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* प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित *
अन्याशोन्नाइस वराइसों ॥ ४-४१३ ॥
अपभ्रंशे अन्य (दश शब्दस्य अन्नाइस अराइस इत्यादेशौ भवतः ॥ अन्नाइयो ।
राइसो ||
अर्थ :- संस्कृतभाष में उपलब्ध विशेषण शब्द 'अन्धाहरा' के स्थान पर अपभ्रंश भाषा में ‘श्रन्नाइस और अवराइस' ऐसे दो रूपों को आदेश प्राप्ति होती हैं। जैसे::- अन्याहस = अन्नाइये और 'अत्र गइमो = अन्य के समान दूसरे के जैसा ।। ४-४१३ ।।
प्रायसः प्राउ - प्राइव - प्राइम्त्र - परिगम्याः ॥ ४-४१४॥
अपभ्रंशे प्रायस् इत्येतस्य भाउ, प्राइव, प्राइम्य, परिगम् इत्येते चत्वार आदेशा
भवन्ति ॥
अन्ने ते दीडर लोषण, अन्नु तं भुअ-जुअलु ॥ अन्तु सुघण थण-हारू, तं अन्नु जि मुह- कमलु ॥
अन्तु जि कम कलाघु सु अन्नु जि प्राउ विह्नि || जेण शिम्बिणि षडिय, स गुण-लायएग - गिहि ॥ १ ॥
प्राइव मुहिं भिन्तडी, तें मणिश्रद्धा गणन्ति || छाड़ निराम परमपइ अज्ज विलउ न लहन्ति ॥ २॥
सुजलें प्राइव गोरि हे सहि ! उच्चता नया सर ।। से समूह संपेसिया देन्ति, तिरिच्छी बस पर । ३ ।।
एसी पिउ रूसेसु हउं रूट्ठी मई परिगम्ब ९३ मणोरहई दुकरु दहउ
[४]
अपुणेड़ ॥
करेइ ||४||
अर्थ :- संस्कृत भाषा मे पाये जाने वाले अव्यय रूप 'प्रायम्' के स्थान पर अपभ्रंश भाषा में चार रूपों की आदेश प्राप्ति होती है; जो कि कम से इस प्रकार है: - (१) माउ, (२) प्राइव, (३) प्राइव और (४) गम् || आदेश मात्र चारों ही रूपों का अर्थ है- बद्दल करके । इन एकार्थक चारों ही रूपों का प्रयोग अपरोक्त गाथाओं में किया गया है; जिनका अनुवाद क्रम से इस प्रकार हैं:--