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[ ५५४ ]
* प्राकृत व्याकरण *
अपभ्रंशे पश्चादादीनां पच्छह इत्यादय आदेशा भवन्ति ।। पश्चातः पच्छ । पच्छइ होइ विहाणु ।। एवमेवस्य एम्बइ । एम्बइ सुरउ समतु ।। एवस्य जिः॥
जाउ म जन्तउ पल्लवह देवखळ कइ पय देइ ।।
हिभइ तिरिच्छी हर जि पर पिउ डम्बरई करइ ॥१॥ इदानीम् एम्बर्हि ।
हरि नच्चाविउ पङ्गणइ बिम्हइ पाडिउ लो॥
एम्बहिं राह-पोहरई जं भावइ तं होउ ॥२॥ प्रत्युतस्य पञ्चलिउ॥
साव-सलोणी गोरडी नवरवी कवि विस-गण्ठि ।।
भडु पञ्चलिउ सो मरह, जासु न लम्गइ कण्ठि । ३ । इतस एत्तहे ।। एत्तहे मेह पिअन्ति जलु ।।
अर्थ:-संस्कृत-भाषा में पाये जाने वाले प्रत्ययों के स्थान पर अपभ्रंश भाषा में जैसी श्रादेशप्राप्ति होती है, उसीका वणन चालू है । तदनुमार इम सूत्र में छह अव्ययों को आदेश प्राप्ति समझाई गई है। वे छह अव्यय अर्थ पूर्वक क्रम में इस प्रकार से है:
(१) पश्चात-पच्छद - पीछे-बाद में। (२) एवमेव = एम्बइ = ऐसा ही इस प्रकार का हा । (३) एव = जि= ही-निश्चय हो । (४) इदानीम - एम्बार्षि-३सी समय में अमी। (५) प्रत्युन पच्चालज-वैपरोत्य-- उल्टापना ।
(६) इतः = एत्तहे इस तरफ इधर एक और । यो मस्कृतीय अध्यय पश्चात' आदि के स्थान पर '१च्छइ' प्राधि रूप से आदेश-प्राप्ति होती है । उपरोक्त छह अध्ययों के उदाहरण कम से इस प्रकार है:--
(१) पवाद् भवात विभातम्पच्छइ हाइ विहाणु-पीछे ( सरकाल हो ) प्रभात-प्रातःकाल हो जाता है।
() एवमेव सुरतं ममासम्एम्बई मुरत समत्त -इस प्रकार से ही-(हमारा) सुरत (रसि-काम) समान हो गया ॥