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* प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित *
(३) संस्कृत: -- यातु, मा यान्तं पलघत, द्रक्ष्यामि काते पदानि ददाति ॥ हृदये तिरश्चीना अहमेव परं प्रियः आडम्बराणि करोति ॥ १ ॥
हिन्दी:- यदि ( मेरा पति । जाता है तो जाने दो; जाते हुए उसको मत बुलाओ ! मैं (भी) देखती हूँ कि वह किसने डग भरता है? कितनी दूर जाता है ? क्योंकि मैं उसके हृदय में (आगे बढ़ने के लिये ) बाधा रूप ही हूँ । ( अर्थात मेरा वह परित्याग नहीं कर सकता है ) । इसलिये मेरा प्रियतम ( जाने का ) आडम्बर मात्र हो (केवल ढांग हो ) करता है। इस गाथा में 'अहमेव ' पद के स्थान पर 'हउ जि' पद का प्रयोग करके यही समझाया है कि 'एव' अव्यय के स्थान पर अपभ्रंश भाषा में 'जि' श्रव्यय रूप को देश-प्राप्ति होती हूँ
( ४ ) संस्कृत: - हरिः नर्तितः प्राङ्गणे, विस्मये पासितः लोकः ॥
इदानीम् राधा - पयोधरयाः यत् ( प्रति ) भाति तद् भवतु ॥२॥
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हिन्दी: - हरि (कृष्ण) अांगन में नांचा अथवा नचाया गया और इससे जन-साधारण ( दर्शकवर्ग ) आश्चर्य ( सागर ) में डूब गया ( अथवा डुबाया गया ) ( सत्य है कि इस समय में राधा-रानी के दोनों स्तनों को जो कुछ भी चच्छा लगता हो, वह होवे उसके अनुसार कार्य किया जाये ) || इस गाथा में 'इदानी' अव्यय के स्थान पर अपभ्रंश भाषा में 'एम्बहिं' आदेश प्राप्त अव्यय रूप का प्रयोग प्रस्तुत किया गया है ||२|
(५) संस्कृत: - सर्व सलावण्या गौरी नवा कापि चिप - ग्रन्थिः ।।
भटः प्रत्युत स म्रियते यस्य न लगति कण्ठे ॥ ३॥
हिन्दी:- :- वह सर्व-जावण्य-सौन्दर्य-संपन्न रमणी कुछ नवीन दो प्रकार को (आश्चर्य जनक ) विष की ( जहर की ) गांठ है जिसके कंठ का आलिंगन यदि (अमुक) नवयुवक पुरुष नहीं करता है तो उल्टा मृत्यु को प्राप्त होता है । ( जहर के श्रस्वादन से मृत्यु प्राप्त होती है परन्तु यह जहर कुछ अनोखा ही है कि जिसका यदि आस्वादन नहीं किया जाये तो उल्टी मृत्यु प्राप्त हो जाती है) । इम अपभ्रंश छेद में 'प्रत्युत' अव्यय के स्थान पर 'पचलिङ' आदेश प्राप्त अव्यय रूप का प्रचलन प्रमाणित किया है ||३||
(६) इत: मेघाः पिबन्ति बल = एत्तहे मेह पिश्रन्ति जलु इस तरफ (इधर एक ओर तो) मेघबादल-अल को पीते हैं। इस चरण में इतः ' के स्थान पर 'एत्त रूप को आदेश प्राप्ति समझाई है ॥४-४२० ॥
विषगणोक्त-वर्त्मनो वुन्न-वुत्त- विच्चं ॥४-४२१॥
अपभ्रंशे विषादीनां वुनादय आदेशा भवन्ति ॥ विषण्णस्य चुन्नः ।