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* प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित * .reumororanorosmooveestorrorismrow00000000000000000000mmeroin
'मत-नहीं' अथक 'मा' अव्यय के स्थान पर 'म' के प्रयोग का उदाहरण यों है:-मा धन्ये ! कुरू विषादम-म धणि ! करहि विना हे धन्यशील नायिके ! तू खेद को मत कर-खिन्न मत हो । 'प्रायः के साथ आवेश-प्राप्ति का विधान होने से अनेक स्थानों पर 'मा' के स्थान पर 'मा' का ही और 'म' का भी प्रयोग देखा जाना है । 'मा' और 'म' के उदाहरण गाथा संख्या चार में और पाँचमें कम से बतलाये गये हैं; उनका अनुवाद यों है:संस्कृत:--माने प्रनष्टे यदि न तनुः तत् देशं त्यजेः ।।
___ मा दुजन-कर-पन्लवः दयमानः भ्रमे ॥४॥ हिन्दी:-यदि आपका मान-सन्मान नष्ट हो जाय तो शरीर का ही परित्याग कर देना चाहिये और यदि शरीर नहीं छोड़ा जा सके तो उस देशको ही (अपने निवास स्थान का ही) परित्याग कर देना चाहिय; जिसमे कि दुष्ट पुरुषों के हाथ की अंगुलो अपनी ओर नहीं उठ सके अर्थात वे हाथ द्वारा अपनी और इशारा नहीं कर सकें और यों हम उनके आगे नहीं घूम सकेप४|| संस्कृतः-लवणं विलीयते पानीयेन, अरे खल मेघ ! मा गर्ज ॥
ज्वालितं गलति तत्कुटीर, गोरी तिम्यति अद्य ॥शा
हिन्दी:-नमक (अथवा लावण्य-सौन्दर्य) पानी से गल जाता है-याने पिगल जाता है। अरे दुष्ट बादल ! तू गर्जना मत कर । जली हुई वह झोंपड़ी गल जायगी और उसमें (बैठी हुई) गौरी(नायिका-विशेष) आज गीली हो जायगी-भीग जायगी ॥५॥ चौथी गाथा में 'मा' के स्थान पर 'मा' ही लिखा है और पाँचवीं में 'मा' की जगह पर केवल 'म' ही लिख दिया है। संस्कृतः-विभवे प्रनष्टे वक्रः ऋद्धी जन-सामान्यः ॥
किमपि मनाक मम प्रियस्य शशी अनुहरति, नान्यः ॥६॥
हिन्दी-संपत्ति के नष्ट होने पर मेरा प्रियतम पतिदेव टेढ़ा हो जाता है अर्थात अपने मानसन्मान-गौरव को नष्ट नहीं होने देता है और ऋद्धि की प्राप्ति में याने संपन्नता प्राप्त होने पर सरल-तीया हो जाता है। मुझे चन्द्रमा की प्रवृत्ति भी ऐसी हो प्रतीत होती हैयह भी कलाओं के घटने पर देदावक्राकार हो जाता है और कलाओं को संपूर्णता में सरल याने पूर्ण दिखाई देता है। यों कुछ अनिर्वचनीय रूप में चन्द्रमा मेरे पतिदेव को थोड़ी सी नकल करता है। अन्य कोई भी ऐसा नहीं करता है। इस गाया में 'मनाक्' अव्यय के स्थान पर 'भगाउं' रूप का प्रयोग किया गया है ।।।। ४-४१८ ।।
किलाथवा-दिवा-सह-नहेः किराहवइ दिवेसहु नाहिं ॥४-४१६ ॥