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* प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित *
[५४६ ] ++++++++++ +++++++++++++++++++ ++++ +++++++++++++++++ के कारण से (ही वे निराश होकर रण-क्षेत्र को छोड़ आये हैं) । इप्त गाथा में 'ततः और तदा' अव्ययों के स्थान पर एक जैसे हो रूप वाले 'तो' अव्यय रूप का प्रयोग किया गया है ॥ ४-४१७ ॥ एवं-पर-सम-व-मा-मनाक-एम्ब पर समाणु ध्र वु मं मणाउँ ॥४-४१८॥
अपभ्रशे एचमादीनाम् एम्वादय आदेशा भवन्ति । एवम् एम्ब।
पिय-संगमि कउ निद्दडी, पिग्रहो परोक्खद्दो कैम्ब ?
मई बिभि वि विनासिया, निद न एम्ब न तेम्य ॥१॥ परमः परः। गुणहि न संपइ, कित्ति पर । सममः समाणुः ।।
कन्तुजु सीहडो उपमिअइ, तं महु खण्डि माणु ।।
सीहु निरक्खय गय हणइ पिउ पय-रक्ख-समाणु ॥२।। ध्रु वमो ध्रुवुः।
चचलु जीविउ, ध्रुवु मरणु पिम रूसिज्जइ काई ।।
होसहि दिनहा, रूसणा दिव्य( बरिस-सयाई ॥३॥ मो मं । मं धणि करहि विसाउ ।। प्रायां ग्रहणात् ।।
माणि पणइ जइ न ता तो देसडा चइज्ज ॥ मा दुज्जण -कर-पनवेहि देसिज्जन्तु भमिजज ॥४॥ लोणु बिलिज्जइ पाणिपण, अरिखल मेह ! म गज्जु ।।
बालिउ गलइ सुझुपडा, गोरी तिम्मइ अज्जु ॥२॥ मनाको मखाउँ ।
विहवि पणदुई वडउ रिद्धिहि जण-सामन्न ।
किं पि मणाउं महु पिअहो ससि अणुहरइ न अनु ॥६॥ अर्थ:-संस्कृत भाषा में पाये जाने वाले अभ्ययों का अपभ्रंश भाषा में भाषान्तर करने पर उनमें कुछ परिवर्तन हो जाता है उसी परिवर्तन का संविधान इस सूत्र में दिया गया है । इस परिवर्तन को पहां पर 'श्रादेश-प्राप्ति' के नाम से लिखा गया है। अध्ययों की क्रम से सूची इस प्रकार हैं: