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* प्राकृत व्याकरण +00000000000000000000000000006sotrimmorroresmrorest+000000000000 संस्कृत:-अन्ये ते दीर्धे लोचने, अन्यद् तद् भुज युगलम् ।।
भन्यः सघन स्तन भारः, तदन्यदेव मुख कमलम् ।। अन्य एव केश कलापः, सः अन्य एवं प्रायो विधिः ॥
येन नितम्बिनी घटिता, सा गुण लावण्य निधिः । १॥ हिन्दी:-( नायिका विशेष का एक कवि वर्णन करता है कि ):--उमकी दोनों बड़ी बड़ी पोखें कुछ और ही प्रकार का है-याने तुलना में अनिर्वचनीय है । उसकी दोनों भुजाणे. (भो) असाधारण है। उसका सघन और कठोर एवं उन्नत स्तन-भार है। उसके मुख-कमल की शोभा भी अद्वितीय है। उसके केशों के समूह की तुलना अन्य में नहीं की जा सकती है। वह विधानाही (ब्रह्मा ही) प्रायः कोई दूसरा हो मालूम पड़ता ; जिसने कि ऐपो विशाल नितम्बों वाली तथा गुण एवं सोन्दर्य के भंडार रूप रमणोन का निर्माण किया है । इस छ में 'प्रायः' के श्रादेश-प्राप्त रूप 'भाई' का उपयोग किया गया है।शा संस्कृतः--प्रायो मुनीनामपि भ्रान्तिः ने मणीन् गणयन्ति ।
अक्षये निरामये परम पदे अद्यापि लयं न लमन्ते ॥२॥ हिन्दी:-अक्सर करके-बहुत करके मुनियों में भी (ज्ञान-दर्शन चारित्र के प्रति , भ्रांति है विपरीतता है; ( इस विपरीतता के कारण से माला फेरते हुए भी केवल ) ये मणकों को ही गिनते हैं
और इसी कारण से अभी तक 'अक्षय-शाश्वत और दुःख रहित-निरामय मोक्ष पद को नहीं प्राप्त कर सके हैं। इस गाथा में प्रायः' की जगह पर 'प्राइवरूप का स्थान दिया गया है ।।२।। संस्कृत:-अश्र जलेन प्रायः गौर्याः सखि ! उवृत्ते नयन सरसी ।
ते सम्मुखे संप्रेषित दत्तः तियंग घात परम् ॥६॥ हिन्दीः-हे सरिन ! उस गौरा ( नायिका विशेष ) के दोनों आँखों रूपी तालाब आँसु रूपी जज सं प्रायः लबालब भरे हुए हैं। वे ( आँख : जब किसी का देबन क लिय इधर बध' घुपाई जाती है तो वे ( आँख ) बड़ा तेज आघात पहुँचाती है । इस छद में 'प्रायः' के स्थान पर 'प्राइम्व' आदेश प्राप्त अध्यय का प्रयाग किया गया है ॥३। संस्कृतः-६ष्यति प्रिया, रोपिध्यामि अहं, रुष्टां मामनु यति ।।
प्रायः एतान् मनोरथान् दुष्करः दयितः कारयति ।।४।। हिन्दी:-( कोई एक नायिका अपनी सखी से कहती है कि ) मेरा प्रियतम पति आवेगा; मैं ( उसके प्रति कृत्रिम ) रोष करूंगी और जर मुझे क्रोधित हुई देखेगा तो मुझे मनायेगा-खुश करने का