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* प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित *
श्रकृत-अकिसा=नहीं किया हुश्रा । नव-नवइ नये में । इन उदाहरणों में यह बतलाया गया है कि 'क' पण स्वर के पश्शान रहा हुआ है, अनादि में स्थित है और संयुक्त भो है, फिर भी इसके स्थान पर श्रादेश रूप से प्राप्तव्य 'ग' वर्ण को आदेश प्राप्ति नहीं हुई है। यों अन्य रक्त शेष व्यञ्जनों के संबंध में भी प्रायः' अव्यय का ध्यान रखते हुए जान लेना चाहिये कि सभी स्थानों पर प्रादेश-प्राप्ति का होना जरूरी नहीं है । वत्ति में उल्लिखित चौथी एवं पाँचची गाश का भाषान्तर क्रम से इस प्रकार है:संस्कृनः- यदि कथंचित् प्राप्स्यामि प्रियं प्रकृतं कौतुकं करिष्यामि ॥
पानीयं नवके शराये यथा सर्वाङ्गण प्रवेक्ष्यामि ॥ ४ ॥ हिन्दी-यदि किसी प्रकार से संयोग वशात् मेरो अपने प्रियतम से भेंट हो जाजगी तो मैं कुछ ऐमी आश्चर्य जनक स्थिति उत्पन्न कर दूंगी; जैसोकि पहिले कभी भी नहीं हुई होगी । मैं अपने संपूर्ण शरीर को अपने प्रियतम के शरीर के साथ में इस प्रकार से प्रारम-सात ( एकाकार ) कर दूंगा; जिस प्रकार कि नये बने हुए मिट्टी के शरावले में पानी अपने श्रापको प्रात्म-सात् कर देता है। ॥४॥ संस्कृता-पश्य ! कर्णिकार: प्रफुल्लितक: काचन कांति प्रकाशः ।।
गौरी नदन्न-मिनिर्जिवला वन सेशे ननधासम् ।। ५ ॥ हिन्दी:-इस कर्णिकार नामक वृक्ष को देखो ! जो कि ताजे फूलों से लदा हुआ होकर परम शामा को धारण कर रहा है। सोने के समान सुन्दर कांति से देदीप्यमान हो रहा है। गौरी के (नायिका विशेष के) प्राभापूण सौम्य मुख-कमल की शोभा से भी अधिक शोभायमान हो रहा है। फिर भी आश्चर्य है कि यह वन-वास ही सेवन कर रहा है; वन में रहता हुभा ही अपना काल क्षेप कर रहा है। इस गाथा में 'कर्णिकारः और प्रकाशः' पदों में 'क' वर्ग के स्थान पर 'ग' वर्ण की आदेश प्राप्ति नहीं हुई है। 'प्रफुल्लितकः और विनिर्जितक:' पदों में भी कम से प्राप्त 'फ' वर्ण तथा 'त' वर्ण के स्थान पर भी कम से प्राणम्य 'भ' वर्ण की और 'द' वर्ण की श्रादेश प्राप्ति नहीं हुई है। यों अनेक स्थानों पर 'प्रायः' अध्यय से सूचित स्थिति को हृदयंगम करना चाहिये ॥ ५॥ ४-३६६ ।।
मोनुनासिको वो वा ॥ ४-३६७ ॥ अपभ्रंशेऽनादी वर्तमानस्यासंयुक्तस्य मकारस्य अनुनासिको वकारो वा भवति ।। कवलु कमलु । भरु भमरु । लाक्षणिकस्यापि । जित | तिव | जेवें । ते ॥ अनादावित्येव । मयणु ।। असंयुक्तस्येत्येव । तसु पर समलउ जम्मु ।।
___ अर्थ:-संस्कृत भाषा के पद में रहे हुए मकार के स्थान पर अपभ्रश भाषा में रूपान्तर करने पर अनुनासिक सहित 'वकार' की अर्थात '३' को भादेश प्राप्ति विकल्प से उस दशा में हो जाती है जबकि