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* प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित * m omorroenormomorrorwwwserrore00000000000000000000minera.mmm अपभ्रशे इदम् शब्दस्य स्यादौ आय इत्यादेशो भवति ॥
प्रायई लोअहो लोअणई जाई सरई न भन्ति । अप्पिए दिट्ठइ मउलिअहिं पिए दिइ विइसन्ति ॥ १ ॥ सोसउ म सोसउ चिन उग्रही बड़वानलस्स कि तेण ॥ जं जलइ जले जलणो श्रापण वि किं न पज्जतं ॥ २ ॥ आयहो दड-कलेवरहों जं बाहिउ त सारू ।।
जइ उहभइ तो कहइ अह डज्झइ तो छारू ॥ ३॥ अर्थ:- अपभ्रंश भाषा में 'इइम्' सर्वनाम के स्थान पर विमक्ति बोधक प्रत्यय से, जस्' आदि की संयोजना होने पर 'श्राय' अङ्ग रूप को श्रादेश प्राप्ति होती है। जैसे:-(१) आयई-इमानि-ये। (२) आएण-एतेन इससे । (३) आयहो-अस्य = इसका; इत्यादि ॥ गाथाओं का संस्कृत एवं हिन्दो अनुवाद कम से यों है:संस्कृतः-इमानि लोकस्य लोचनानि जाति स्मरन्ति, न भ्रान्तिः ।।
अप्रिये दृष्टे मुकुलन्ति, प्रिये दृष्टे विकसन्ति ।। १ ।। हिन्दी:-इसमें संदेह नहीं है कि-जनता की ये आँखें अपने पूर्व जन्मों का स्मरण करती हैं। जब इन्हें अप्रिय (पाते) दिखलाई पड़ती है तब ये बंद हो जाता है और जब इन्हें प्रिय (बातें) दिखलाई पढ़ती हैं, तब ये खिल उठती है अथवा ये खुल जाती हैं ॥ १ ॥ संस्कृतः-शुष्यतु मा शुष्यतु एच (= वा) उदधिः वडवानलस्य किं तेन ॥
यद् ज्वलति जले, ज्वलनः एतेनापि किं न पर्यासम् ।। २ । हिन्दी:-समुद्र परि पूर्ण रूप से सूखे अथवा नहीं सूखे, इससे बढ़वानल नामक समुद्री अग्नि को क्या ( तात्पर्य है ? क्योंकि यदि वह वड़वानल नामक प्रचंड अग्नि जल में जलती रहती है तो क्या इतना हो पर्याप्त नहीं है ? अर्थात् जल में अग्नि का जलते रहना हो क्या विशिष्ट शक्ति-शोलता का योतक नहीं है ? ॥२॥ संस्कृत:-अस्य दग्धकलेवरस्य यद् वाहितं ( लब्धम् ) तत्सारम् ।।
यदि पाच्छाद्यते तस्कुथ्यति यदि दह्यते तत्तारः ॥ ३ ॥ हिन्दी:-इस नश्वर ( और निकम्मे ) शरीर से जो कुछ भी ( पर-सेवा आदि रूप ) कार्य की प्राप्ति कर ली जाय तो वही (बात)सार रूप होगी, क्योंकि ( मत्यु प्राप्त होने पर ) यदि इसको ढांक कर