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* प्राकृत व्याकरण .
प्रत्यय 'भ्भस' का तथा षष्ठी विभक्ति के बहुवचन के घोतक प्रत्यय 'आम्' का संयोग होने पर मूल शब्द 'अस्मद' और इन प्रत्ययों के स्थान पर हमेशा ही 'धम्हह ऐसे पद-रूप की आदेश प्राप्ति का संविधान है जैसे:-अस्मभ्यम् - अम्हास हमारे लिये और अस्माकम (अथवा न:): अम्हह हमारा, हमारी, हमारे॥ सूत्र में और [न्ति में 'चतुर्थी-विभक्ति का संरलेख नहीं होने पर भी सूत्र संख्या ३-१३१ के संविधानानुसार यहाँ पर चतुर्थी-विभक्ति का भी उल्लेख कर दिया गया है मो ध्यान में रहे । वृत्ति में
आये हुए उदाहरणों का भाषान्तर यों है:-(1) अस्मत् भवतु थागतः= अम्हहं होन्तन प्रागदो = हमारे से आया हुआ हो । (२) अथ भग्नाः अस्मदीयाः तत् = अह मांगा अम्हह तणा= यदि हमारे पक्षीय (वीर-गण) भाग खड़े हुए हों तो वह".""( पूरी गाथा ४-३५६ में दी गई है)। यो पचमी बहुवचन में और षष्ठी बहुवचन में 'अम्हह' पद रूप की स्थिति को जानना चाहिये । ४-३६० ।।
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सुपा अम्हासु ॥४-३८१ ॥ पासपशे मराः सुपा सह आम्हासु इत्यादेशो भवति ॥ अम्हासु ठिा ।
अर्थ:-अपभ्रंश भाषा में 'मैं-इम' वाचक सर्वनाम शब्द 'अस्मदू' के साथ में सप्तमी विभक्ति के बहुवचन के द्योतक प्रत्यय 'सुप' का संयोग होने पर मूल शब्द 'अस्मद्' और प्रत्यय 'सुप' दोनों ही के स्थान पर नित्यमेव 'अम्हासु' ऐसे पद-रूप की आदेश प्राप्ति होती है। जैसे:-अस्मासु स्थितम् = अम्हासु ठिभ-हमारे पर अथवा हमारे में रहा हुआ है ।। ४-३२१ ॥
त्यादेराद्य त्रयस्य संवन्धिनो हिं न वा ॥ ४-३८२ ॥ त्यादीनामाद्य त्रयस्य संबन्धिनो बहुवर्थेषु वर्तमानस्य वचनस्यापभ्रंशे हिं इत्यादेशो वो भवति ।
मुह-कारि-बन्ध तहे सोह धरहिं ।
नं मल्ल-जुझ ससि--राहु-करहिं ।। तहे सहहिं कुरल ममर-उल-तुलिम।
नं तिमिर-डिम्भ खेलन्ति मिलिग ॥१॥ अर्थ:-सत्र-संख्या ४-३८९ से ४.३८८ तक में मिानों में जुड़ने वाले काल-बोधक प्रत्ययों का वर्णन किया गया है। यों सर्व सामान्य रूप से तो जो प्रत्यय प्राकृत भाषा के लिये कहे गये हैं, लगभग वे सब प्रत्यय अपभ्रंश भाषा में भी प्रयुक्त होते हैं। केवल वर्तमानकाल में, प्राज्ञार्थ में और भविष्यता काल में ही थोडासा अन्तर है; जैसा कि इन सूत्रों में बतलाया गया है।