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[४७. ]
* प्राकृत व्याकरण * Commro000000000000000rsortamoortoors..000000000000000000000000
अर्थ:-प्राकृत भाषा में सूत्र संख्या १-१७७ से प्रारम्भ कर के सूत्र-सखया १-२६५ तक जो विधिविधान एवं लोप पागम श्रादि की प्रवृत्ति होती है, वैसी प्रवृत्ति तथा घसा लोप-पागम श्रादि सम्बन्धी विधि-विधान पैशाची भाषा में नहीं होता है । इसका बराबर ध्यान रखना चाहिये । उदाहरण यों हैं:(१) मकर-केतः = मकरकेतू । इम उदाहरण में प्राकृत भाषा के समान क' षण के स्थान पर 'ग' वण की प्राप्ति नहीं हुई है । (मार-पुत्र-तन - सार-उस-नम:- पगर राजा के पुत्र के वचन । यहाँ पर भी 'ग' कार तथा 'च' कार वर्ण को लोप नहीं हुआ है। (३) विजयसेन लपितं -विजयसेनेन लपित = विजयसेन से कहा गया है। इस में 'जकार' वण का लोप नहीं हुआ है । (४) मदन-मननमदन काम देव को । यहां पर 'दकार' वर्ण का लोप नहीं हुआ है, परन्तु सूत्र-संख्या ४-३०७ से दवणे के स्थान पर 'त' वर्ण की प्रामि हुई है। (५) पाप-पाप-पाप। यहाँ पर भी 'प' कार वर्ण के स्थान पर 'वकार' वर्ण की प्राप्ति नहीं हुई है। आयुध-आयुध =शस्त्र विशेष । यहाँ पर 'यार' प्रण के स्थान पर 'यकार' वर्ण ही कायम रहा है (७) देवर:= तेवरी पति का छोटा भाई । यहां पर भी 'कार' के स्थान पर सूत्र संख्या ४-३०७ से 'त' कार वण की प्राप्ति हुई है। यों अन्यान्य उदाहरणो की कल्पना स्वयमेव कर लेनी चाहिये । इस प्रकार से सूत्र-संख्या ९-१७७ से सूत्र-संख्या १.२६५ तक में वर्णित विधि-विधानों का पैशाची भाषा में निषेध कर दिया गया है ।। ४-३.४॥
इति पैशाची-भाषा-व्याकरण-समाप्त