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* प्राकृत व्याकरण * .0000000000000000+etreamsootrotrartooto00000000000000000
अप-भ्रशे नाम्नोन्त्यस्वरस्य दीर्व-हस्यौ स्यादौ प्रायो भवतः ॥ सौ ॥ ढोला सामला धण चम्पा-चपणी ॥
गाइ सुवण्णा रेह कस-बदा दिपणी ॥१॥ श्रामन्त्र्ये ।। बोल्ला मई तु हुँ बारिया, माकुरू दीहा माणु ॥
निदए गमिही रत्तडी, दडवड होइ विहाणु ॥ २ ॥ स्त्रियाम् ।। बिट्टीए ! मइ भणिय तु हुँ, माकूरू बंको दिहि।
पुत्ति ! सकएणी भलि जिग मारइ हिइ पइहि ॥ ३६ जमि ॥ एइ ति छोडा, एह थलि, एह ति निसिया खम्म ।।
एल्थु मुणी सिम जाणिअइ जो न वि वालइ वग्ग ॥ ४ ।। एवं विभक्त्यन्तरेष्वप्युदाहायम् ।।
अर्थ:--अपभ्रंश भाषा में संज्ञा शब्दों में विभक्त वाचक प्रत्यय "स जम्, शस' श्रादि जोड़ने के पूर्व प्रान शब्दों में अन्त्य स्वरों के स्थान पर प्रायः हस्त्र की जगह पर दोघ स्वर की प्राप्ति हो जाती है
और दीर्घ स्वर के स्थान पर हस्व इयर हो जाया करता है। जैसा कि उदाहरण-रूप में उपरोक्त गाथाओं में प्रदर्शित किया गया है। इनकी ऋभक विवंचना इस प्रकार है:
(१) प्रथम गाथा में पुल्लिंग में प्रथमा विभक्ति के वचन में 'लुक' प्रत्यय की प्राप्ति होने से 'ढोल्ल' और सामल' यो अकारान्त होना चाहिये था; जबकि इन्हें 'ढारुला और सामला' के रूप में लिखकर अकारान्त को प्राकारान्त कर दिया गया है । इसी प्रकार संघणा और सुबष्णरेह।' स्त्री लिंग वाचक शब्दों में भी 'लुक' प्रत्यय की प्रधमा विभिक्ति के एकवचन में श्राप्ति होने पर भी इन पदों को अकारान्ल कर दिया गया है और यो 'धण' तथा 'सुवगण-रह लिख दिया गया है. : गाथा का संस्कृतश्रानुवाद और हिन्दी-माथान्तर निम्न प्रकार से हैं:संस्कृत:-पिटः श्यामलः धन्या चम्पक-वर्णा ।।
इस सुवर्ण-रेखा कष-पट्टके दत्ता ॥ १ ॥ अर्थ:-नायक तो श्याम वर्ण ( काले रंग) वाला है और नायिका चम्पक वर्ण ( स्वर जैसे रंग ) वाले चम्पक फूल के समान है। याँ इन दोनों की जोड़ी ऐप्तो मालूम होती है कि मानी सोना परखने के लिये घर्षण के काम में ली जाने वाली कालं कसोटी पर 'माने की रेखा खींचदो गई है॥१॥ (२) दूसरी गाथा में 'ढोल्ल' के स्थान पर 'ढोल्ला'; 'वारियों के स्थान पर कारिया' ; 'दोहु' की जगह पर दोहा' और निदाए' नहीं लिख कर 'निदप' लिखा गया है। इस गाथा का संस्कृत तथा हिन्दी रूपांसर निम्न प्रकार से है:--