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अर्थ :- अपभ्रंश भाषा में स्त्रीलिंग वाले शब्दों में पंचमी विभक्ति के बहुवचन में प्राप्तव्य प्रत्यय 'भ्यस्' के स्थान पर 'हु' प्रत्यय की आदेश प्राप्ति होती है। इसी प्रकार से षष्ठी विभक्ति के बहुवचन में भी प्राप्तव्य प्रत्यय 'आम्' के स्थान पर 'हु' को आदेश प्राप्ति ( विकल्प से ) जानना चाहिये । सूत्र- संख्या ४- ३४५ से इस प्राप्त प्रत्यय 'हु' का प्रायः लोप हो जाया करता है। इस संविधान के अतिरिक्त यह भी विशेषता है कि इस प्राप्त प्रत्यय 'हु' में अथवा 'लोप विधान' के पूर्व स्त्रीलिंग शब्दों में रहे हुए अन्त्य स्वर को विकल्प से ह्रस्व से दीर्घश्व की और दीर्घं से ह्रस्वत्व की प्राप्ति भी होती है । यों पंचमी विभक्ति के बहुवचन में स्त्रीलिंग शब्दों में दो रूप होते हैं और षष्ठी विभक्ति के बहुवचन में चार चार रूप हो जाते हैं । उदाहरण के रूप में गाथा में जो पद 'वयंसि बहु' दिया गया है; उसको पंचमी और षष्ठी के बहुवचन में दोनों में गिना जा सकता है। जैसे कि:- वयस्याभ्यः अथवा वयस्थानाम् = वयंसिअह = मित्रों से अथवा मित्रों के बीच में । पूरी गाथा का संस्कृत हिन्दी रूपान्तर यों है:---
* प्राकृत व्याकरण *
संस्कृतः - भव्यं भूतं यन्मारितः भगिनि ! अस्मदीयः कान्तः । अलज्जियत् वयस्याभ्य: यदि भग्नः गृहं ऐष्यत् ॥
अर्थ :- हे बहिन ! यह बड़ा अच्छा हुआ; कि मेरे पति (युद्ध में युद्ध करते करते) मारे गये । यदि वे हार कर ( अथवा कायर बन कर ) घर पर आ जाते तो मित्रों से ( अथवा मित्रों के बीच में ) लज्जित किये जाते । (उनकी हँसी उड़ाई जाती ) ॥ ४- ३५१ ॥
ङे हिं ॥ ४- ३५२ ॥
अपभ्रंशे स्त्रियां वर्तमानानाम्नः परस्य ङोः सप्तम्येकवचनस्य हि इत्यादेशो भवति ॥
वायसु उड्डावन्तिभए पिउ दिट्टिउ सहमति ॥
श्रद्धा वलया महि हि गय श्रद्धा फुट्ट तड चि ॥ १ ॥
अर्थः- अपभ्रंश भाषा में स्त्रीलिंग शब्दों में सभी विभक्ति के एकवचन में प्राप्तव्य प्रत्यय 'द्वि' के स्थान पर 'हि' प्रत्यय रूप को आदेश प्राप्ति होती है । प्राप्त प्रत्यय 'हि' की संयोजना करने के पूर्व स्त्रीलिंग शब्दों के अन्य स्वर की विकल्प से 'हृस्वत्व से दीर्घत्व' की और 'दीर्घव से हस्वत्व' की प्राप्ति हो जाती है। इस प्रकार से अपभ्रंश भाषा में सभी स्त्रीलिंग वाचक शब्दों के सप्तमी विभक्ति के एकवचन में दो दो रूप हो जाते हैं। जैसे :- महिहि महीहि = पृथ्वी पर वेणुहि गाय में । मालविचाहिं, मालडि श्रहि = माला में माला पर | गाथा का अनुवाद यों हैं:
गाय पर
संस्कृतः - बायसं उड्डापयन्त्या प्रियो दृष्टः सहसेति ॥
अनि वलयानि मद्यां गतानि, अर्थानि स्फुटितानि तटिति ॥