________________
* प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित *
[४६६ ]
ownedroornvrrrrrrrr......
पैशाच्या यदुक्तं ततोन्यच्छेषं पैशाच्या शौरसेनी बद् भवति ॥ अध ससरीरो भगवं मकर-धजो एत्थ परिम्भमन्तो हुबेष्य । एवं विधाए भावनीर कधं तापस-वेस-गहन कतं ॥ एतिसं अतिह-पुरवं महा धनं तध्दन । भगवं यति मं वरं पयच्छमि राजं च दार लोक । ताव चतीए तूरातो गयेव तिट्टो सो आगच्छमानो राजा ॥
अर्थः-पैशाची-भाषा में अन्य भाषाओं की अपेक्षा से जो कुछ विशेषताएँ हैं; वे सूत्र-संख्या ४-३०३ से ४.३५२ तक के सूत्रों में बतला दी गई है। शेष सभी विधि विधान शौरसेनी-भाषा के समान हो जानना चाहिये । शौरसेनी-भाषा में भी जिन अन्य भाषाओं के विधि विधानों के अनुपार जो कार्य होता है; उस कार्य को अनुवृत्ति भी इस पैशाची-भाषा में विवेक-पूर्वक कर लेनी चाहिये । जो विधि
पैशाची-भाषा में लाग नहीं पडने वाला है: चमका कथन भागे श्रानेवाले सुत्र-संख्या ४-३२४ में किया जाने वाला है ! वृत्त में पैशाची मामा और शोरोनी भाषा की तुलना करने के लिये कुछ उदाहरण दिये गये हैं। उन्हीं को यहाँ पर पुन: उद्धृत किया जा रहा है, जिनसे तुलनात्मक स्थिति का कुछ आभास हो सकेगा। (१। अथ सशरीरो भगवान मकरध्वजः अत्र परिभ्रमन्तो भविशति अव सस. रीरी भगवं मार-धजो एत्य परिकम मन्ती हुवेश्य = अब इसके बाद मूर्तिमन्त होकर भगवान कामदेव यहाँ पर परिभ्रमण करते हुए होंगे। (२) एवं विधवा भगवत्या कथं तापस-वेश-ग्रहणं कृतम् = एवं विधाए भगवतीए कधं तापस-वेस गहनं कतं = इस प्रकार की ( श्रायु और वैभव पाली) भगवती से ( राज कुमारो धादि रूप विशेष श्री से ) कैसे तापस वेश (सात्रीपना) प्रहण किया गया है। (३) ईदृशं अष्टपूर्ण महाधनं दृष्ट्वा एतिस तिट्ट-युर व महा धन सधन = जिप्तको पहिले कभी मी नहीं देखा है, ऐसे महाधन को ( विपुल मात्रा वाले और बहु मूल्य वाले धन को ) देख कर के।
भगवन! यदि माम् परं प्रयच्छसि राज्यं च तावत् लोकम् = भगवयात में घरं ययच्चसि राजंचताष लोकहे भगवान् ! यदि आप मुझे वरदान प्रदान करते है तो मुमे लोकान्त तक का राज्य प्राप्त होवे । (५) तावत् च तया दूपत् एव दृष्टः सः आगच्छमामो राजा-ताष च तीए तूरातो प्येष तिठ्ठो सो आगच्छमानो राजा-तब तक श्राता हुआ वह राजा उसपे दूर से ही देख लिया गया। इन उदाहरणों से विदित होता है कि पैशाची भाषा में शेष सभी प्रकार का विधि-विधान शौरसेना के समान ही होता है ।। ४-३२३ ।। न क-ग-च-जादि-पट्-शम्यन्तसूत्रोक्तम् । पैशाच्या क-ग-च
ज-त-द-प-य-वां ॥४-३२४ ।। प्रायो लुक (१-१७७) इत्यारभ्य षट्-शमी-शाव-सुधा-सप्तपर्णेष्वादेश्छः (१-२६५) इति यावद्यानि सूत्राणि तैयदुक्तम् कार्य तम भवति ।। मकरकेतू । सगर-पुत्त-वचनं । विजय सेनेन लपितं । मतनं । पापं । आयुध । तेवरो ।। एवमन्यसूत्राणामप्युदाहरणानि दृष्टव्यानि ।।