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* प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित
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निर्देश किया गया है। जैसे:- भवति = होइ होति - वह होता है। यहां पर 'हो' धातु श्रकारान्त होने से 'होते' रूप की प्राप्ति नहीं होगी। दूसरा उदाहरणः - नयति यो नेति = वह ले जाता है । यहाँ पर माँ 'ने' धातु एकारान्त होने से इसका रूप 'नेते' नहीं बनेगा | यो सर्वत्र प्रकारान्त वातुओं की और अन्य स्वरान्त धातुओं की स्थिति को पल' अथवा 'ते' प्रत्यय के संबंध में स्वयमेव समझ लेनी चाहिये ।। ५-२१६ ॥
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भविष्यत्येय्य एव ।। ४-३२० ॥
पैशाच्या मिचेचो : स्थाने भविष्यति एय्य एव भवति न तु स्मिः ॥ तं तदून चिन्तितंत्र का ऐसा हुवेश्य ||
अर्थ. - संस्कृत भाषा में भविष्यत्काल के अन्य पुरुष के एकवचन में 'ध्यति' प्रत्यय होता है, इसो 'ष्यति' प्रत्यय के स्थान पर प्राकृत भाषा में 'हिइ और हिर' हो जाता है; परन्तु पेशाची भाषा में इन 'हिइ और हिए' प्रत्ययों के स्थान पर केवल 'एय्य ऐसे एक ही प्रत्यय की प्राप्ति होती है। यों ''यति' प्रत्यय से नियमानुसार प्राप्त होने वाले 'हिंस' अक्षरात्मक प्रत्यय की श्रादेश प्राप्ति नहीं होगी। जबकि शौरसेनी भाषा में सूत्र संख्या ४-२७५ से भविष्यत् काल के अर्थ में ( वत्र्तमान-कालीन प्रत्ययों के पूर्व ) 'रिस' प्रत्ययांश की प्राप्ति होती है। वास्तव में यह 'य' प्रत्यय रूप नहीं होकर प्रत्यय के अर्थ में 'माकेतिक अक्षर पमूह 'मात्र हो हूँ । यो प्राप्तव्य प्रत्यय-रून 'एयय' को धातुओं में जोड़ने के समय में धातुओं में रहे हुए अन्त्य स्वर का लोप हो जाता है । यह बात ध्यान में रखी जानी चाहिये। जैसेवाचिन्तितं राज्ञा का एषा भविष्यात = तं तन चिन्तितं रा का एसा दुय्य=पस चित्र को देख कर के राजा से सोचा गया (की) ऐसी स्त्री कौन होगी ? यहाँ पर 'भविष्यति' पद के स्थान पर 'दुवेय' ऐसे पद-रूप की प्राप्ति हुई है ।। ४-३२० ॥
तो इसे र्डातोडातु ॥ ४-३२१ ॥
पैशाच्यामकारात् परस्य ङसेडितो
तूरा तो ययेव तिड्डो | तूरातु । तुमाती । तुमातु । ममातो | ममातु ||
तो ऋतु इत्यादेशौ भवतः ॥ वाच च तीए
अर्थ:- पैशाची भाषा में पंचमी विभक्ति के एकवचन में अकारान्त शब्दों में 'डातो - श्रतो' और 'हा' प्रत्ययों की आदेश प्राप्ति होती हैं। 'डातो और डातु' प्रत्ययों में 'डकार' इत्संज्ञक होने से अकारान्त-शब्दों में रहे हुए अन्त्य 'अकार' का लोप हो जाता है । तत्पश्चात् हलन्त रूप से रहे हुए शब्दों में 'wal और आतृ प्रत्ययों की संयोजना की जाती हैं। जैसे:- (१) तावत च तथा दूरात् एव हृष्टः = तावच तीए नूराती प्येव तिठो और तब तक दूर से ही बस (श्री) से देखा गया (२)
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