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* प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित *
[ ४६५ ] +00000000+torrosecorrrorroneestoresrookerosorrorisetorersorr.0000000m पत्नी । (२) स्नातम् = सिनातम्मान किया हुआ । धुलाया हुश्रा और (३) कष्टम् = कसदं = पोड़ा, वेदना ।।
प्रश्न:-'कहीं-कहीं पर हो होते हैं; ' ऐसा क्यों कहा गया है ?
उत्तरः-क्यांकि अनेक शब्न में 'य' 'मन' और ट' होने पर भी 'रिय', 'सिन' और 'मद की प्राप्ति होती हुई नहीं देखा जाता है। जैसः--(१) सूर्यः = मुज्जी-सूरज । (२) स्नुषा= मुनुस्सा - पुत्रवधू । ३) तुष्टः = निठी प्रसन्न हुश्रा, संतुष्ट हुआ ॥ ४-३१५ ।।
क्यस्येय्यः ॥ ४-३१५ ॥ शाच्यां क्य प्रत्ययस्य इग्य इत्यादेशो भवति ॥ गिम्यते । दिग्यते । रमिय्यते । पठिय्यते ॥
अर्थः-सस्कृत भाषा में कमी-प्रयोग-भावे प्रयोग के अर्थ में 'क्य -- य' प्रत्यय की प्राप्ति होती है; नदनुमार उक्त 'य' प्रत्यय के स्थान पर पैशाचा-भापा में 'इश्य' प्रत्यय की आदेश प्राप्ति होती है । जैसे:(१) गीयते -गिय्यते = गाया जाता है। दीयत दिव्यते = दिया जाता है। (३) रम्यते = रभिश्यते = खेला जाता है और (४) पठयत = पठियपते = पढ़ा जाता है; इत्यादि ।। ४-३१५ ।।
कृगो डीरः ॥ ४-३१६ ॥ पैशाच्या कृगः परस्य क्यस्य स्थाने डोर इत्यादेशो भवति ॥ पृधुमतंसने सन्बम्सव्यव संमानं कोरते ।।
अर्थः -पैशाची भाषा में कर्माण प्रयोग, भावे प्रयोग के अर्थ में कृ धातु में 'क्य = य' प्रत्यय के स्थान पर 'डार = ईर प्रत्यय का आदेश-प्राप्ति होता है । प्रात प्रत्यय 'टोर में स्थित 'डकार' इन्संज्ञक होने सं 'कृ' धातु में अवस्थित अन्त्य र 'ऋ' का लोप हो जाता है और यो अवशेष हलन्त धातु 'क' में उक्त 'इंस' प्रत्यय की प्रात होगी। उदाहरण यों है:--प्रथम-दर्शने सर्वस्य एवं सम्मान कियते = पुष मतंसने सच्चस्स य्येव समान कीरते = प्रथम दर्शन में सभी का सम्मान किया जाता है। ४.३१६॥ .
यादृशादे दुस्तिः ॥ ४-३१७ ॥ पैशाच्या यादृश इत्येवमादीनां है' इत्यस्य स्थाने तिः इत्यादेशो भवति ।। यातिसी। तातिसो । केतिलो । एतिसो । भवातिसो । अमातिसो । युम्हातिमी अम्हातिमो ॥
अर्थ:--संस्कृत-भाषा में 'यादृश, तादृश' आदि ऐसे जो शब्द हैं; इन शों में अवस्थित 'ह' के स्थान पर पैशाची-भाषा में सि' वर्ण को आदेश-प्राप्ति होती है। जैसे:-(१) याता: = यातिसी=