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* प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित *
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-कुल अथवा कुटुंब । (३) जलम् =जळ = पानी। (४। सलिलम - सळिळं = जल अथवा कोड़ापूर्वक । (५) कमलम् = कमळ = कमल पद्म ॥ ४-३०० ।।
श-षोः सः॥४-३०६ ।। पैशाच्या शषोः सो भवति ।। श । सोभति । सोभनं । स सी | सक्को। संखो ।प। विसमो। विसानो ॥ नकगचजादिपट्-शम्यन्त सूत्रोक्तम् (४-३२४) इत्यस्य बाधकस्य बाधनार्थोयं योगः॥
अर्थ:-संस्कृत-भाषा के शब्दों में रहे हुए 'शकार' वर्ण और 'पकार' वर्ण के स्थान पर पैशाची. भाषा में 'सकार' वर्ण की श्रादेश प्राप्ति होती है । 'श' के नाहर 43:-१) शोभति (अथवा शोभते) भितिवह शोभा पता है, वह प्रकाशित होता हैं। शोभनं = सोभमंन्शोभा स्वरूप ||18) शाशिः = ससी: चन्द्रमा । (४) शकः = सको = इन्द्र । (५) शेवः संखो-शंख || 'प' के उदाहरणः(१) विषमः = पिसमो - जो बराबर नहीं हो; जो अव्यवस्थिन हा । () विषाणः = विसानो = मींग ॥ इस अन्तिम उदाहरण में-'विषाण' में स्थित 'णकार' वर्ण के स्थान पर पैशाची भाषा में 'नकार' वण को
आदेश-प्रासि को जाकर ‘ण कार' की अभाव-सूचक जो स्थिति प्रदर्शित की गई है; उसका रहस्य बृत्त में सूत्र-संख्या ४.३२४ को उद्धृत कर के समझाया गया है । जिप्तका तापर्य यह है कि सूत्र-सख्या-१-१७७ में प्रारम्भ करके सूत्र संख्या १-२६५ तक का संविधान पैशाची भाषा में लागू नहीं पड़ता है । इस विशेष स्पष्टीकरण मागे सूत्र-संख्या-४-३२४ में किया जाने वाला है। तदनुसार 'ए कार के स्थान पर 'नकार' को स्थिति का जानना चाहिये । यो यह सूत्र चाधक स्वरूप है और इस प्रकार यह इस बाधा को उपस्थित करता है ।। ५.३०६ ।।
हृदये यस्य पः ।। ४-३१० ॥ पैशाच्या हृदय-शब्दे यस्य पो भवति ॥ हितपक। किपिकिं वि हितपके अत्थं चिन्तयमानी ।।
अर्थ:--संस्कृत भाषा के शब्द 'हृदय' में अवस्थित 'य कार' वर्ण के स्थान पर पैशाची भाषा में 'पहार'वछ को आदेश प्राप्ति हो जाता है । जैसे:-हृदयकम् =हितपकं - हृदय; दिन । किमपि किमपि
के अर्थम् चिन्तयमाणी-कि पिकि पि हितपके अत्थं चिन्तयमानी-हदय में कुछ भी कुछ मा(भपष्ट छा)मर्थ को सोचती हुई । यो 'य' का 'प' हपा है ।। ४-३० ।।
टोस्तु ॥ ४-३११ ॥