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* प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित *
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अथ पैशाची-भाषा-व्याकरण-प्रारम्भ
ज्ञो नः पैशाच्याम् ॥ ४-३०३ ॥
पैशाच्या भाषायां शस्य स्थाने जो भवति ।। पआ। सम्आ। सध्वनो। आनं। विज्ञान ।।
अर्थ:-पैशाची भाषा में संस्कृत शब्द-रूपों का रूपान्तर करने पर 'ज्ञ' के स्थान पर का' की
। जन-. .. काय .. बुद्धि । (.) संज्ञा = सना नाम, भावना (३) सवज्ञ = मनमो = सब जानने वाला । (४) बानका ज्ञान और (५)विज्ञान-विज्ञान-विज्ञान । ॥४-३०३॥
राज्ञो वा चिञ् ॥ ४-३०४॥ पैशाच्या गज्ञ इति शब्द यो ज्ञकारस्तस्य चित्र आदेशो वा भवति ॥राचित्रा लपितं । रञा लषितं । राचिनो धनं । रञी धनं । ज्ञ इत्येव । राजा ॥
अर्थ:-संस्कृत-पद 'राज्ञ' में रह हुए 'ज्ञके स्थान पर पैशाची भाषा में विकल्प से 'चिय' वर्णो को आदेश-प्राप्ति होता है । जैसे:-राज्ञा लक्ति - राषिञा लमित-वैकल्पिक पक्ष होने से रुका लापित - राजा से कहा गया है। (२ राक्षः धनं - रावित्री धने-बकल्पिक पक्ष होने से रो धनराजा का धन' ।
प्रश्न:--' का उल्लेख क्यों किया गया है ?
उत्तर:-जहाँ पर 'राज' से संबोधन 'ज्ञ' का अभाव होगा वहां पर चित्र' की प्रामि नहीं होगी। जैसे:--'राज' शब्द से मृत्तीया विक्ति के एकवचन में 'गजा' रूप बनने पर भी इस 'राजा' पद का रूपां. तर पैशाची-भाषा में 'राजा' ही होगा। यो 'ज्ञ' की विशेष ग्थिात को जानना चाहिये ।। ४.३०४ ।।
न्य-गयो नः॥ ४-३०५ ॥ पैशाच्या न्यायोः स्थान ओ भवति ॥ कञका । अभिमञ्च । पुज-कम्मो !
पुञआहे ।
___अर्थ:--सस्कृत-भाषा के पदों में रहे हुए वर्ण न्यौं घोर 'एय' के स्थान पर पैशाची भाषा में 'य' की प्राप्ति होती है । जैसे:-(१, कन्यकाकनका = पुत्री। (२) भाभमन्यु अभिम - अर्जुन पाउन