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* प्राकृत व्याकरण * ++otho+00000000000000000000000000000000000000000000000000000000000+m
पैशाच्या टो: स्थाने तुर्वा भवति ॥ कुतुम्बकं । कुटुम्बकं ।। __ अर्थ:---संस्कृत-भाषा के शब्दों में रहे हुए 'दकार' वर्ण के स्थान पर पैशाची भाषा में 'तु' वर्ण को विकल्प से प्रादेश-प्राप्ति होती है। जैसे:-कुटुम्बकम् - कुतुम्बकं अथवा कुटुम्बकं = कुटुम्ब वाला
क्व स्तूनः ॥ ४-३१२ ॥ पैशाच्या क्त्वा प्रत्ययस्य स्थाने तून इत्यादेशो भवति || गन्तून । रन्तून । हसितून । पठितून । कधितून ॥
अर्थ:-संस्कृत-भाषा में संबंध-अवेक कृदन्त बनाने के लिय धातुओं में जैसे 'क्या' प्रत्यय की प्राप्ति होती है। वैसे ही पैशाचा-भाषा में उन कत्रा' प्रत्यय के स्थान पर 'तून' प्रत्यय की श्रादेश-प्राप्ति होती है। जैसे:-(१) गत्वा गन्तून - जाकर के। (२) रवा-रन्तुन = रमण करके । (३) हासत्ता हसितन - हँस कर के । (४) कथयिषा कथितन-कह कर के; (५ पठित्वा = पठिनून = पढ़ कर के; इत्यादि ।। ४.१२ ।।
धून-त्थू नौ ष्ट्वः ॥ ४-३१३ ।। पैशाच्या ष्ट् वा इत्यस्य स्थाने धून त्थून इत्यादेशौ भवतः । पूर्वस्यापत्रादः । न टून । नत्थून । तदून । तत्धून ।।
अर्थ:-संस्कृत भाषा में 'वस्वा प्रत्यय के स्थान पर प्राप्त होने वाले प्रत्यय 'ष्ट्वा' के स्थान पर पैशाचा-भाषा में 'दून और न्यून' ऐसे दो प्रत्यप-रूपों की आदेश प्राप्ति होती है। यह सूत्र पूर्वोक्त सूत्रसंख्या ४-३१२ के प्रति अपवाद स्वरूप सूत्र है। उदाहरण यों है:-(१) नष्ट्वा - नटुन अथवा नत्थून नाश कर के । (२) सष्टया = तन अथवा तत्थून = तात्र करके । ॥ ४-३ ॥
र्य-स्न-ष्टां रिय-सिन-सटाः क्वचित् ॥४-३१४ ॥ पैशाच्या यं स्नष्टां स्थाने यथा-संख्यं रिय सिन सट इत्यादेशाः क्वचिद् भवन्ति ।। भार्या । मारिया । स्नातम् । सिनातं । कष्टम् । कसट ।। क्वचिदिति किम् । सुनो । सुनुसा। तिट्ठी ॥
__ अर्थ -संस्कृत भाषा के शब्दों में रहे हुए 'यं' 'स्न' और 'ट' के स्थान पर पैशाची-भाषा में इसी कम से 'रिय', 'सिन' और 'सट' का प्राप्ति कहीं-कहीं पर देखो जाती है । जैसे:-(१) भार्या भारया