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* प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित *
गवेषेढुंढुल्ल-ढरढोल-गमेस-घत्ताः ॥ ४-१८६ ॥ गयेपेरेते चत्वार आदेशा वा भवन्ति ।। हुंदुलइ । ढंढोलइ । गमेसइ । घत्तइ । गवेसइ ।।
अर्थ:-'हूँदना, खोजना, अन्वेषण करमा' अर्थक संस्कृत-धातु 'गवेष = गधेषय' के स्थान पर प्राकृत-भाषा में विकल्प से चार धातु-रूपों को आदेश प्राप्ति होती है । जो कि कम से इस प्रकार है:(१) दुदुल्ला, (२) ढंढोल, (३) गमेष और (४) प्रत्त । वकालेपक पक्ष होने से 'गवेम' भी होता है। जैसे:-- गवेषयति = (१) हुँदुल्लड़, (२) दढोलइ, (३) गमेसइ, (४) बत्तइ, और (५) गवेसई = वह वढना है, वह खोजता है अथवा वह अन्वेषण करता है ॥ ४-१८९ ।।
श्लिषेः सामग्गावयास-परिअन्ताः ।। ४-१६० ।। श्लिष्यतेरेते त्रय आदेशाचा भवन्ति ॥ सामग्ाह । अवयासइ । परिअन्तइ । सिलेसइ ॥
जी...'चालिंग करना, गले लगाना अर्थक संस्कृत-धातु श्लिप' के स्थान पर प्राकृत भाषा में विकल्प से तीन धातु-रूपों की श्रादेश प्राप्ति होती है । जो कि कम से इस प्रकार है:-(१)मामांग, (२)अत्रयास और (३)परिअन्त । वैकल्पिक पक्ष होने से सिलेस' भी होता है। उक्त चारों एकार्थक धातुओं के उदाहरण यों है:-मिलष्यति- (१) सामग्गइ, (२) अवयासह, (३)परिअन्तर और (४)सिलेसइ - वह आलिंगन करता है अथवा वह गले लगता है ॥ ४-१६० .
म्रा थोप्पडः ॥४-१६१॥ प्रदोश्वाप्पड इत्यादेशो वा भवति ॥ चोप्पडइ । मक्खइ ।
अर्थ:-स्निग्ध करना श्रथवा घी तेल आदि लगाना' अर्थक संस्कृत-धातु 'म्रक्ष के स्थान पर प्राकृत-भाषा में विकल्प से 'चोपद्ध' धातु-रूप की आदेश प्राप्ति होती है। य िपक पक्ष होने से मनख' भी होता है जैसे:-प्रक्षति - घोप्पडइ अथवा मक्खा - वह स्निाय करता है अथवा वह घ) तेल श्रादि लगाता है || ४-१६१ ॥ कांक्षराहाहिलंघाहिलंख-बच्च-वम्फ-मह--सिह-विलुम्पाः ॥ ४.-१६२ ॥
कांक्षतेरेतेष्टादेशा वा भवन्ति ॥ आहइ । अहिलंघः । अहिलंखइ। बच्चइ । वम्फइ । महइ । सिहइ । विलुपड़ । कंखइ ॥
अर्थः-'चाहना, अभिलाषा करना' अर्थक संस्कृत-धातु कांच के स्थान पर प्राकृत भाषा में विकल्प से पाठ धातु रूपों की प्रादेश प्राप्ति होती है। जो कि क्रम से इस प्रकार है: (१)माह,