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* प्राकृत व्याकाण*
[४३६ ] minsorrrrror.000000000000000000000000000000000000000000000000000000 स्थान पर 'पुरव' और 'पुष्य' एसे दोनों शव-रूपा का प्रयोग देखा जाता है । प्राकृत भाषा में सूत्र-संख्या २-१३५ में 'पूर्व' के स्थान पर 'पुग्मि' ऐसा रूप भी विकल्प से उपलब्ध है।
शौरसेनी भाषा संबंधो 'पुरव' और 'पुग्ध' शब्दों के उदाहरण क्रम से इस प्रकार हैं:-(१) अयूमम नाटकम् = अपुरवं नाडयं अथवा अपुवं नाइयं = अनोखा नाटक, अद्भुत खेल । (२) अपूर्वम् अगवम् अपुरघागंद अथवा अपुल्यागद = अनोखी औधि अथवा अद्भुत दवा। (३) अपूर्षम् पदम = अपुर्व पद अथवा अपुरवं पदं - अनोखा पढ़, अदभुत शब्द । इत्यादि ।। ४.२७० ।। .
__ क्त्व इय-दृणौ ॥ ४-२७१ ॥ शौरसेन्या क्त्वा प्रत्गय स्य इय दण इत्यादेशौ वा भवतः ।। भविय, भोदूण | हृविय, होण । पढिय, पदिदग । रमिय, रन्दण । पक्षे । भोत्ता । होता ! पढित्ता । रन्ता ॥
अथः-अध्ययी रूप सम्बन्ध भूत कृदन्त के अर्थ में संस्कृत-भाषा में धातुओं में 'क्वाखा ' प्रत्यय का योग होता है। ऐसा होने पर धातु का अर्थ 'करके' अर्थ वाला हो जाता है। जैसे:-- खाकरके पी करके, इत्यादि । शौरसेनो भाषा में इसी संबंध-भूत-कृदन्त के अर्थ में संस्कृतीय-प्रत्यय 'स्वा' के स्थान पर विकल्प से 'इय अथवा दूण' ऐसे दो प्रत्ययों को आदेश प्राप्ति होती है। वैकल्पिक पक्ष होने से पक्षान्तर में संस्कृतीय प्रत्यय 'स्वा' के स्थान पर सूत्र-संख्या २.७६ से तथा २-६ से 'व' का लोप होकर द्वित्व 'ता' की प्राप्ति होने से इस 'त्ता' प्रत्यय को ही संबध भत-कृदन्त के अर्थ में संयोजित कर दिया जाता है। जैसे:-मत्वाभाविय, भोण, हर्दिय और होदूण अथवा होता - होकर के । पहिवापढ़िय, पाणि, अथवा पादत्ता पढ़ कर के अध्ययन करके । रन्या-रमिय, रन्दूण अथवा रन्तारमन करकः खेल करक ।। ४-१॥
कृ-गमो डडुः ॥ ४-२७२ ॥ श्राभ्यां परस्य क्त्या प्रत्ययस्य डित् अडुअ इत्यादेशो वा भवति ।। कडुन । गडुस । पक्षे । करिय । करिदृण । गच्छिय गच्छिद्रण ॥
अर्थ:--सस्कृत-धातु - करना' और 'गम् = गच्छ जाना' के संबंध भत कृदन्त के रूप शौरमनी भाषा में बनाना होनी सूत्र माया ४.२७१ में वर्णित प्रत्यय 'इय, दूण और त्ता' के अतिरिक्त विकल्प से 'तुडुश्र-श्रदुष' प्रत्यय की भी आदेश प्राप्ति होता है। 'ड डु अ' प्रत्यय में श्रादि "ड्' इत्त संज्ञा वाला होने मे 'कृ' धातु के श्रन्स्य स्वर 'ऋ' का और 'गम्' धातु के अन्त्य वर्ण 'अम' का लोप हो जाता है, एवं तत्पश्चात् शेष रहे हुए धातु-अंश 'क' और 'ग' में क्त्वा त्वा अर्थक 'अडुअ' प्रत्यय को भी विकल्प से संयोजना की जाती है। जैसे:-कृत्याकडुअ-करके | वैकल्पिक पक्ष होने से पक्षान्तर में