________________
[४४८ ]
* प्राकृत व्याकरणा* • •••••••••••••+++++++++++ +++++++++o vvvvvệex 99%++++++++++
आर्ष वादी वृद्ध पुरुषों की ऐसी मान्यता है कि "अर्ध मागधी" भाषा सुनिश्चित है, अत्यंत पुगनी है और इसलिये इसके नियमों का विधान करने को आवश्यकता नहीं हैं। यह बात अपेक्षा विशेष से भले ही ठीक हो परन्तु इस विषय में हमारा इतना ही निवेदन है कि हम भी प्रायः उन्ही रूपों का विधान करते हैं और उन्हीं के अनुकूल नियमों का निवारण करते हैं. जो कि अध मागधी भाषा के साहित्य में उपलब्ध है; अतः पुराण वादियों के मत से प्रतिकूल बात का विधान नहीं किया जा रहा है। जैसे:-फतरः आगच्छति = कयरे आगच्छइ = दो में से कौन अाता है ? २) स तादृशः दुःखसहः जितेन्द्रियः = से तारिसे दुक्खसहे जिइन्दिए-यह जैमा इन्द्रियों को जोतने वाला है वैसा हो दुःखों की भी महन करने वाला है। इन उदाहरशों में यह प्रदर्शिन किया गया है कि जो पद अकारान्त पुल्जिग वाले हैं उन सब में प्रथमा विभक्ति के एक वचन में सु' प्रत्यय के स्थान पर एकार' को ही प्रानि प्रदर्शित की गई है; यो 'अर्धमागधी' भाषा में उपलब्ध स्वरूप का हो समर्थन किया गया है और इसी की पुष्टि के लिय ही इस सूत्र का निर्माण किया गया है। यों प्राचीन मान्यता को हो संरक्षण प्रदान किया गया है। अतः इसमे विरोध का प्रश्न ही नहीं है ।। ४-५८७ ॥
र-सोल-शौ ।। ४-२८८ ।।
मागध्यां रेफस्य दन्त्य सकारस्य च स्थाने यथा संख्यं लकार: तालव्य शकारश्च भवति ॥र नले । कले ॥ स । हंशे । शुदं । शोभणं । उभयोः । शालशे । पुलिशे ॥
लहश-वश-मिल शुल-शिल-विअलिद-मन्दाल-लाविदंहियुगे ।।
वील-थिणे पक्वालदु मम शयलम वय्य-यम्बालं ॥१॥
अर्थ:--मागधी भाषा में रेफरूप 'रकार' के स्थान पर और दस्य 'सकार' के स्थान पर क्रम से 'लकार' और तालव्य 'शकार' की प्राप्ति हो जाती है । उझहरण इस प्रकार हैं:---'रकार' से 'लकार' की प्रामि का उदाहरणः-नर: =नले मनुष्य । करः = कले = हाथ ! 'मकार' से 'शकार' की प्राप्तिका उदाहरण:-हंसः = इंशे-हंस पक्षी । सुतम् = शुदं = लड़के को। सोभनम् = शोभण - सुन्दर । यदि एक हो पद में सकार' पा जाय तो भी उन दोनों सकारों' के स्थान पर 'शकारों' को प्रामि हो जाती है। जैसेः-सारसः शालशे = सारस जाति का पक्षा विशेष । पुरुषः =पुलिशे ॥ मनुष्य । 'पुरुष' उदाहरण से यह भी ज्ञात होता है कि मागधी-भाषा में मूर्धन्य 'धकार' के स्थान पर भो तालव्य शकार की प्रामि हो जाया करती है।
____ऊपर सत्र की वृत्ति में जो गाथा सद्धृत की गई है उसमें यह बतलाया गया है कि मायधी-भाषा में 'रकार' के स्थान पर 'लकार' को, 'सकार' के स्थान पर 'शकार' को, 'तकार' के स्थान पर 'वकार' की, 'जकार' के स्थान पर 'य.कार' को और य' प्रयुक्त व्यस्नान के स्थान पर द्वित्व रब' को क्रम से प्राप्ति हो जाती है तथा प्रथमा विभक्ति में अकारान्त के स्थान पर एकारान्त' का प्रादेश प्राप्ति हो जाती है।