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* प्राकृत व्याकरण *
अर्थ:-मागधी-भाषा में प्राकृत और शोर सेना के अतिरिक्त जो कुछ परिवर्तन अथवा रूपान्तर होता है वह ऊपर सूत्र संख्या-११-२८७) से (४-३०) में व्यक्त कर दिया गया है। शेष परिवर्तन के संबंध में इस सूत्र में और इसकी वृत्ति में कह दिया गया है कि-'अन्य सभी प्रकार का परिवर्तन संस्कृत से मागधी में रूपान्तर करने की दशा में 'प्राकृत-भाषा में तथा शौरसेनी-भाषा में वर्णित परिवर्तन सम्बन्धो नियमों के अनुसार जाननी चाहिये । इस प्रकार के संकेत के माथ-साथ 'प्राकृन तथा शौरसेनी' में वर्णित कुछ मूल मूत्रों के साथ उदाहरण भी वृत्ति म दिये गये हैं। जिन्हें में हिन्दी-अथ-पूर्वक निम्न प्रकारसे लिख देता हूं:(१) सुत्र-संख्या ४.६० में बतलाया है कि 'तकार' का 'दकार' होता है तदनुसार 'भागधी-भाषा' का उदाहरण इस प्रकार है:-प्राविशतु आयुक्तः स्वामि-प्रसावाय = पविश आवृत्ति शाभिपशादाय = स्वामी की प्रसन्नता के लिये मचष्ट प्रवेश करी । (१) सूत्र-संख्या ४-२६१ में कहा गया है कि इलन्त व्याजन के पश्चात रहने वाले 'तकार' का भी 'दकार' हो जाता है । जैसे:- अरे ! किम् एय महान्तः करतल: = अले ! कि एश महन्दे कलयले = क्या यह महान हथेलो है ? 13) सूत्र-संख्या १-२६२ में लिखा गया है कि 'तावत' अव्यय के आदि 'नकार' के स्थान पर वैकल्पिक रूप से 'दकार' की प्राप्ति होती है। जैसे:-अयम् तावत् तस्य भागमः, (अधुना) मारयत वा धारयत वा अयं दाव शे आगमे, (अहुणा मालेध या घालेध वा-यह उसका श्रागमन हो गया है; (ब) मारो अथवा रक्षा करो । यो 'तावत' के स्थान पर 'दाव' रूप को प्राप्ति हुई है। (४) सूत्र संख्या ४-२६३ में संकेत किया है कि 'इन' अन्न वाले शब्मों के संबोधन के एकवचन में 'म्' प्रत्यय परे रहने पर अन्त्य हलन्त 'नकार' के स्थान पर फिल्म से आकार की प्राप्ति होती है। जैसे:-- भो कञ्चुकिन् ! = भो ! कञ्चइआ-अरे कन्चुको ।। (4) सूत्र संख्या ४-२६४ में यह उल्लेख किया गया है कि 'नकारात' शब्दों के एकवचन में 'स' प्रत्ययपरे रहने पर अन्त्य 'नकार' के स्थान पर विकल्प मे 'मकार' को प्राप्ति होती है। जैसे:-भोराजन् ! = भो राय = है राजा (६) सूत्र-संख्या ४-२६५ में यह प्रदर्शित किया गया है कि-'भवत्' और 'भगवन' शब्दों के प्रथमा विभक्ति के एकवचन में 'स' प्रत्यय प्राप्त होने पर निर्मित पर 'भवान् और भगवान के अन्त्य 'नकार' के स्थान पर 'मकार' को प्राप्ति होता है। जैसे:-(१) एतु भवान् श्रमणः भगवान महावीरः = एदुभव शमणे भयव महापीले-श्राप महा प्रभु श्रमण महावीर पधारे हैं। (२) भगवन् कृतान्त ! य. आत्मनः पक्ष
या परस्य पक्ष पमाणी करोषि-हे भय कदन्ते ! ये अपणो पर उझिय पलस्त पत्र के पमाणी कलारी = हे भगवान् यमराज ! श्राप ऐसे हैं, जो कि थाने पक्ष को छोड़ करके दूसरे पक्ष को प्रमास्वरूप करते हो।