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प्राकृत व्याकरण * mootronderstarreratorrearresretarwesorewersoot00000000000orrersosorn कर्मणःकारी-हंग म एलिशाह कम्मा' काली- मैं इस प्रकार के कर्म का करने वाला नहीं हूँ। (२) भगदत्तशोणितस्य कुम्भः= भगदत्त-शोणिदाह कुम्भे = भगदत्त नामक व्यक्ति विशेष के रक्त का (यह) घड़ा है। इन उदाहरणों में एलिशाह, कम्साह और शागिदाह षष्ठी विभक्ति के एकवचन में प्राप्तव्य प्रत्यय 'स्स' के स्थान पर 'आह' लिखा गया है । वैकल्पिक स्थिति होने से पकान्तर में 'स' प्रत्यय भी होता है। जैसः- (१) भीमसेनस्य पर बात हिण्डयते -भीमशंणस्त पश्चादी हिण्डीभीमसेनके पीछे पीछे धूमता है। (२) हिडिम्बायाः घटोत्कचशोकः न उपशाम्यतिहिडिम्बाए धडकयोके ण उपशमदि= हिडिम्बा राक्षसिरणा का (पसके पुत्र) घटोर सच-(के मृत्यु का) शोक शान्त नही होता है। इन उदाहरणों में सं प्रथम उदाहरण में 'भोमशेणा' नहीं बतला कर 'भीमशेगम्म ऐमा रूप प्रदर्शित किया गया है । द्वितीय
शाहरण में 'हिडिम्बाह' नहीं लिखकर 'हिडिम्बार लिखा गया है, जो यह मूचित करता है कि स्त्रीलिंग शब्दों में षष्ठी विभक्ति के एकवचन में 'आह' प्रत्यय की प्राप्ति नहीं होती है । यो आह और स्म' प्रत्ययों को वैकल्पिक स्थिति को समझ लेना चाहिये ।। ४.२६६ ॥
आमो डाह बा।।४-३०० ॥ मागध्यामवर्णात परस्य आमोनुनासिकान्तोडित् आहादेशी वा भवति ॥ शय्यणाहँ सुहं । पदे 1 नालन्दाणं ।। पत्थयात् प्राकृतविता । तुम्हाहैं। अम्हाहँ। सरियाई । कम्माह।
अर्थ:-मागधी भाषा में अकारान्त पुल्लिग अथवा नपु मकस्लिा बाल शब्दों के षष्ठी विभक्तक बहुवचन में प्राप्रव्य प्रत्यय एवं अथवा ' के स्थान पर विकल्प से अनुनासिक सहित 'डा = आहे की प्राप्ति होती है। सूत्र में उल्लिखित 'डाहँ' में निधन डकार' इत्संज्ञावाचक होने से 'आहे' प्रत्यय लगने के पहिले अकारान्त शब्दों के अन्त्य 'अकार' का लोप हो जाता है। तदनु पार कंबल 'श्राई' प्रत्यय को ही प्राप्ति होती है। उदाहरण यों है:-सजनानाम् सुखम् = शय्यणाहँ सुई - सजन पुरुषों का सुख ! वैकल्पिक पक्ष होने से षष्ठी-विभक्ति बोधक प्रत्यय 'णं अथवा ' का पदाहरण भी यो है:-नरेन्द्राणाम: नलिन्दाणं = राजाओं का ॥ मागधी-भाषा में प्राप्त उक्त प्रत्यय 'आई' कभी-कभी प्राकृत भाषा में भी देखा जाता है। ऐसी स्थिति को व्यत्यय' स्थिति कही जाती है। प्राकृत भाषा के उदाहरण इस प्रकार हैं:(१) तेषाम् - ताहूँ - उनका अथवा उनके । (२) युष्माकम् तुम्हा-तुम्हारा, तुम्हारे पापका आपके । (३) अस्माकम् = अम्हा है = हमारा, हमारे । (४) सरिताम् = सरिभाहुँ-नदियां का। (५) कर्मणाम् = कम्माह = कर्मों का-कार्या का । यो मागधा का प्रभाव प्राकृत भाषा में भी देखा जाता है ।। ४.२० ॥
अहं वयमोहंगे ॥४-३१॥ मागध्यामहं वयमोः स्थाने हगे इत्यादेशो भवति ।। हगे शकावदालतिस्त-णिवाशी घीनले । हगे शंपत्ता॥