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199009
* प्राकृत व्याकरण *
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ट्ट-ष्ठयोस्ट: ।। ४-२६० ॥
द्विरुक्तस्य टस्य षकाराक्रान्तस्य च ठकारस्य मागध्यां सकाशक्रान्तः टकारो भवति ।। ट्ट | स्टे । मस्टालिका | भस्टिगी || ष्ठ | शुद्ध कदं । कोस्टागालं ||
अर्थः - संस्कृत भाषा के शब्दों में उपज द्विव 'ह' के स्थान पर और हलन्त 'बहार' सहित 'ठकार' के स्थान पर मागी भाषा में इलन्त 'सकार' सहित 'टकार' की प्राप्ति होती है। द्वित्व 'टकार' के उदाहरण यों हैं: - (१ पट्टा पडे पदार्थ विशेष (२) भट्टारिका भस्टालिका=महार को स्त्री । भट्टिनी-मस्टिणी = भट्ट की स्त्री'' क उदाहरण इस प्रकार हैं. - (१) सुष्उकृतम् = शुस्तुक = अच्छा किया हुआ । (२) कोष्ठागारम् = कोस्टागाल= धान्य आदि रखने का स्थान विशेष
॥ ४-२६० ॥
स्थ-र्थयोस्तः ॥ ४-२६१ ॥
स्थ, र्क्ष, इत्येतयोः स्थाने मागध्य सकाराकान्तः तो भवति स्य । उचस्तिदे | शुस्तिदे || थे | अस्त चदी | शस्तवाहे ॥
अर्थः - संस्कृत भाषा के शब्दों में उपलब्ध स्थ' और 'थ' के स्थान पर मागधी भाषा में हलन्स 'सकार' पूर्वक 'तकार' की प्राप्ति होती है । 'स्थ' के उदाहरः- (१, उपस्थितः = उवस्तिदे = मौजूद - हाजिर । (२) सुस्थितः =ास्ति = अच्छी तरह से रद्दा हुआ। 'थ' के उदाहरणः - (१) अर्थतिः = अस्त-बढ़ी धन का मालिक । (२) सार्थवाहः शस्तवाह सद्-गृहस्थ अथवा बड़ा व्यापारी
।। ४-२६१ ।।
ज- द्य-यां-यः ।। ४-२६२ ॥
मागच्यां जद्ययां स्थाने यो भवति । ज । याखदि । यशवदे । अध्युणे | दुय्यणे । यदि । गुण-दे || छ । मध्यं । अय्य किल विध्याले आगदे ।। य । यादि । यधाशलू | याण धत्तं । यदि ॥ यस्य यत्व - विधानम् श्रादेर्योजः (१ - २४५ ) इति बाधनार्थम् ॥
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अर्थः - संस्कृत भाषा के शब्दों में उपलब्ध 'ज', 'द्य' और 'य' के स्थान पर मागधी भाषा में 'य' की प्राप्ति हो जाती हैं। 'ज' के उदाहरण: - (१) जानाति = यादि = वह जानता है । (२) जनपदः = are प्रान्त का कुछ भाग विशेष परगना, तहसील) (३) अर्जुनः = अय्युणे = पाण्डु पुत्र, महाभारत का नायक (४) दुर्जन: दुय्यणे=दुष्ट पुरुष । (५) गर्जति = गय्यादि = गर्जता है । (६) गुणवर्जितः= गुण-वरियदे = गुणों से रहित || '' के उदाहरण: - ( १ ) मद्यं = मद्यं = शराब । (२) अद्य किल = अय्य
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