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* प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित * more .torrorrononerotonormour stratevv.krinatomemainstroom 'कारण, कारण अथवा कारत्ता' रूप भी बनेंगे। गम् गच्छ का उदाहरण:-गया-गदुम जाकर फे । वैकल्पिक पक्ष होने से पतान्तर में 'गछिय, मच्छिण' रूप भी बनेंगे ॥ ४-२७२ ॥
दि रि चे चोः ॥ ४-२७३ ॥ त्यादिनामाद्य त्रयस्यायस्येचेचो ( ३-१३६ ) इति विहितयोरिचेचोः स्थान दिर्भवति ।। वेति निवृत्तम् । नेदि । देदि । भोदि । होदि ।।
अर्थः-वर्तमानकाल बोधक, तृतीय-पुरुष वाचक एक पचनीय प्रत्यय 'तिअथवा 'त' के स्थान पर प्राकृत भाषा में सूत्र-संख्या ३-१३६ से 'इ अथवा ए' प्रत्यय की प्राप्ति कहो गई है, तदनुसार प्राकृतभाषा में प्राप्त इन 'इ अथवा ए' प्रत्ययों के स्थान पर शौरसेनी भाषा में 'दि' प्रत्यय की नित्यमेव श्रादेशप्राप्ति होती है। वृत्ति में 'वा इति निवृत्तम' शब्दों का तात्पर्य यही है कि वैकल्पिक स्थिति' का यहां पर अभाव है और इसलिये 'दि' प्रत्यय की प्रामि नित्यमव सर्वत्र जानना । जैमनयति मेदिबह लं जाता है। यातिवोदि-वह देता है। भवति - मोदि अथवा होदि - वह होता है ॥ ४-२५३ ।।
अतो देश्च ॥४-२७४ ॥
अकारात् परयोरिचेचोः स्थाने देश्चकाराद् दिश्च भवति । अच्छदे । अच्छदि । गच्छदे । गच्छदि । रमदे । रमदि । किज्जदे । ज्जिादि ।। अत इति किम् । वसुभादि । नेदि । भोदि।
__ अर्थ:-अकारान्त धातुओं में प्राकृत भाषा में वर्तमान-काल के तृतीय पुरुष के अर्थ में लगने वाले एक वचनीय प्रत्यय 'इ अश्रवा ' के स्थान पर शौरसेनी भाषा में 'दे' प्रत्यय का प्रयोग होता है। मूल-सूत्र में उल्लिखित 'चकार से यह अर्थ समझना कि- 'उक्त 'दे' प्रत्यय के अतिरिक्त 'दि' प्रत्यय का मो प्रयोग होता है। इस षियक उदाहरण कम से यों है: --(१) आस्ते = अच्छदे अथवा अच्छदि = वह बैठता है। (२) गच्छति = गच्छदि अथवा गच्छड़े - बह जाता है। (३) रमते = रमड़े अथवा । रमदि वह क्रीड़ा करता है -बह खेलता है। (४) करोति = किज्जदे अथवा किज्जदि - वह करता है; इत्यादि ।
प्रश्नः---प्रकारात धातुओं में ही प्रत्यय 'इ अथवा ए' के स्थान पर 'दे' अथवा दि होता है। ऐसा क्यों कहा गया है ?
उत्तर:-जो धातु अकारान्त नहीं हैं, उनमें लगने वाले प्रत्यय 'इअधवार' के स्थान पर है' प्रत्यय की प्राप्ति नहीं होता है; परन्तु केवल 'दि' प्रत्यय को ही प्राप्ति होता है ऐसा जानना चाहिये और