________________
[ ४३८ ]
* प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित *
इह-हचोईस्य ॥४-२६८॥ इह शब्द संबंधिनो मध्यमस्येत्था-हची (३-१४३) इति विहितस्य इचश्च हकारस्य शौरसेन्यो यो वा भवति ॥ इध । होध । परित्तायध ॥ पक्षे । इह । होह । परित्तायह ।।
अर्थ-सस्कृत-शब्द "इह" में रहे हुए "हकार" के स्थान पर शौर सेनी-भाषा में विकल्प से "धकार" को आदेश-प्राप्ति होती है । जैसे:-इह - इध अथवा इह = यहां पर सूत्र-सख्या ३-१४३ में वर्तमान-काल-बोधक मध्यम-पुरुष-वाचक बहु वचनो प्रत्यय 'इस्या और ह' कहे गये हैं, तदनुसार उक्त "कार" प्रत्यय के स्थान पर मां शोर सेना-भाषा में विलय से "कार" रूप प्रत्यय की यादेश प्राप्त होती है। यो "हकार" के स्थान पर विकल्प सं "धकार" को आदेश-प्राप्ति जानना चाहिये । जैसे: (१) भषय होध अथवा होह- तुम होते हो । (२) परित्रायवे-परित्तायध अथवा पारतीयह = तुम संरक्षण करते हो अथवा सुम पोषण करते हो ॥ ४-.६८ ।।
भुवो भः ॥४-२६६ ॥ भवते हंकारस्य शौरसेन्यां भो वा भवति ।। भोदि होदि भुषदि, हुवदि ।। भवदि, हदि ॥
अर्थ:-संस्कृत-भाषा में होना' अर्थक भू-भव' धातु है; इस 'भज्' धातु के स्थान पर प्राकृतभाषा में सूत्र संख्या ४-६० से विकल्प में 'हव' 'हो' और 'हुर' धातु रूपों की प्रादेश-प्राप्ति होती है। तदनुसार इन आदेश प्राप्त 'हष, हो और हुव' धातु रूपों में स्थित हकार' के स्थान पर शोर से नी-भाषा में विकल्प से 'भकार' को प्राप्ति होती है और ऐसा होने पर हत्र का भव, मो का भी नया हुव का भुव' विकल्प से हो जाता है। जैसे:-भवति = (१) भोदि, (२) होदि. (३) भुषदि, (हुवादि (५) भवदि और (६) हवाद = वह होता है ।
सूत्र-संख्या ४-२४३ सं वर्तमानकाल-वाचक तृतीय पुरुष बोधक एक बचनीय प्रत्यय fत' के स्थान पर 'दि' की प्राप्ति होती है; जैसा कि ऊपर के उदाहरणों में बतलाया गया है । प्रताव क्रियापकों में यह ध्यान में रखना चाहिये ॥ ४-२६६ ।।
पूर्वस्य पुरवः ॥ ४-२७० ॥ शौरसेन्या पूर्व शब्दस्य पुरव इत्यादेशो या भवति ॥ अपुरत्रं नाडयं । अपुरवागर्द। पक्षे । अपुर्व पदं । अपुन्वागदं ।।
अर्थः-संस्कृत शब्द 'पूर्व' का प्राकृत-रूपान्तर 'पुटव होता है. परन्तु शौरसेनी भाषा में 'पूर्व' शरद के स्थान पर विकल्प से 'पुरव' शब्द की प्रादेश-प्राप्ति होती है। यों शौरसेनी भाषा में 'पूर्व' के