________________
I
* प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित *
अम्महे हर्षे ॥ ४--२८४ ॥
शौरसेन्याम् अस्महे इति निपातो हर्षे प्रयोक्तव्यः ॥ अम्महे एआए सुम्मिलाए सुपलि
1444440000
गो भवं ॥
[ ४४५ ]
..
अर्थ:- हर्ष व्यक्त करना हो तब शौरसेनी भाषा में 'अम्मदे' ऐसे अव्यय शब्द का प्रयोग किया जाता है । 'अम्मड़े' ऐसा शब्द बोलने पर सुनने वाला समझना है कि बा प्रसन्नता प्रकट कर रहा है - खुशी जाहिर कर रहा है। जैसे:- आहा ! ओहो ) एतयामूर्भिलया सुपरिगृहतिः भवान् = अम्हे एआए मुस्मिला सुपलिंगी प्रसन्नता की बात है कि इस सूर्मिला (स्त्री विशेष) भली प्रकार से प्रण किये गये हैं। यों यह हर्ष घोतक एव रूढ अर्थ अव्यय है ।। ४-२८४ ॥
आप
ही ही विदूषकस्य || ४-२८५ ॥
शौरसेन्याम् ही ही इति निपातो विदूषकाणां हर्षे द्योत्ये प्रयोक्तव्यः मे ही ही संपन्ना मणोरधा पिय-वयस्सस्स ||
अर्थ:- विदूषक जन अर्थात् राजा के साथ रहने वाला 'मसरा व्यक्ति विशेष ) जब हर्ष प्रकट करता है तो वह ही ही' ऐ शब्द बोलता है। विदूषक द्वारा 'ही ही' ऐसा बोलने पर सुनने वाले समझ जाते हैं कि यह अपना हर्ष प्रकट कर रहा है। जैसे अहो ! अरे । अरे ! संपन्ना मनोरथाः प्रियस्यस्य = ही हो सो संपन्ना भणोरधापिय वयस्सस्स आहा ! आहा ! प्रिय मित्र के मनोरथ ( मन की भावनाएँ) परिपूर्ण हो गये (अथवा हो गई हैं । श्रीं 'हो ही' अव्यय का हर्ष योतक रूढ अर्थ है। यह अव्यय केवल विदूषक-जनो द्वारा ही प्रयुक्त किया जाता है ।। ४-२६५ ।।
शेषं प्राकृत ऋतू ।। ४-२८६ ॥
शौरसेन्यामिह प्रकरणे यत्कार्यमुक्त वतोन्यच्छौर सेन्यां प्राकृतषदेव भवति ॥ दीर्घहस्त्रों मिथा वृत्तौं ( १-४ ) इत्यारभ्य तो दोनाद शौरसेन्यामयुक्तस्य ( ४-२६० ) एतस्मात् सूत्रात् प्राग् यानि सूत्राणि एषु यान्युदाहरणानि तेषु मध्ये अमूनि तदवस्थान्येव शौरसेन्यां भवन्ति, अमूनि पुनरेवंविधानि भवन्तोति विभागः प्रति सूत्र' स्वयमभ्यू दर्शनीयः ॥ यथा । अन्दावेदी । जुरदि जगो । मणसिला । इत्यादि ||
अर्थ:
: - यह सूत्र
सर्व-सामान्य रूप से यह बतलाना है कि शौरसेनो भाषा के लगभग सभी नियम प्राकृत भाषा के समान ही होते हैं। जो कुछ भी अन्तर परस्पर में है वह अन्तर सूत्र संख्या ४-२६० सं