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* प्राकृत व्याकरण *
[४४१ ] 000000000orroresnormorrorrowrorrowesr0000ornwrotnotesnok.000000000 इसा लिये 'अकारान्त धातु' शब्द का उल्लेख किया गया है। जैसे:-उहाति = वसुआदि = वह सूखता है--यह शुष्क होता है । नयति = नदि = वह ले जाता है । भवति : भोदि = वह होता है । इन उदाहरणों में बमुमारे और भी भातु कसो नगारा, पारान और प्राकारान्त 'है; इसलिये इन धातुओं में शौरसेनो भाषा if 'दि प्रत्यय की हो प्राप्ति हुई है तथा 'दे' प्रत्यय की प्राप्ति इनमें नहीं होगी। थों अकारान्त के सिवाय अन्य स्वरान्त धातुओं में मा '' प्रत्यय की हो प्राप्ति होगी, न कि 'दें' प्रस्थय को प्राप्ति होगी। ४.२७४ ।।
भविष्यति स्तिः ४-२७५. शौरसेन्यां भविष्यदर्थे विहिते प्रत्यये पर रिस भवति । हिस्साहामपवादः ॥ भबिस्सिदि । करिस्सिदि । मच्चिस्सिदि ॥
अर्थ:--प्राकृत भाषा में सूत्र संख्या ३.१६६ में तथा ३-१६५ में ऐमा विधान कया गया है कि भविष्यत-काल-वाचक विधि में धातुओं में वर्तमानकाल-पाचक प्रत्ययों के पूर्व हि, अथवा सा अथवा हा प्रत्ययों को जोड़ने से वह क्रियापद भविष्यत काल-बाधक बन जाता हैं। इस सूत्र में शौरसे नो भाषा के लिये उक्त विधान का अपवाद किया गया है और यह निर्णय दिया गया है कि शौरसेनी भाषा में भविष्यत काल वाचक अर्थ में वर्तमान काल बोधक प्रत्ययों के पहिले केवल 'रिस' प्रत्यय का ही प्राप्ति होकर वह कियापद भविष्यत् काल अर्थ बोधक बन जाता। तदनुसार शौरसेनी भाषा में भविष्यत्काल बोधक अर्ध के लिये धातुओं में वर्तमान-काल-वाच रत्ययों के पूर्व 'हि, अथवा मा अथवा हा' विकरण प्रत्ययों की प्राति नहीं होगो । उदाहरण यों हैं:-(१) अविष्यतिम्भपिस्सिदि = वह होगा अथवा वह होगी। (२) करिष्यति = करिस्सिदि = वह करंगा अथवा वह करेगी। (३) गमिष्यति = गच्छिस्सिदि = वह जावेगा अथवा वह जायेंगी ।। ४२७४ ।।
अतो उसे डॉ दो-डा द् ॥ ४-२७६ ॥ अतः परस्य ङसे: शौरसेन्यां आदो बाहु इत्पादेशौद्धिती भवतः ॥ दूरादो ययेव । दूरादु ॥
अर्थः- अकारान्त संज्ञा शब्दों के पंचमी विभक्ति के एकवचन में संस्कृतीय प्रत्यय 'इमि' के स्थान पर शौरसेनी-भाषा में 'यादो और प्रादुऐसे दो प्रत्ययों की प्रादेश प्राप्ति होती है । यह आदेशप्रामि 'डिन' स्वरूप वाली होने में उक्त 'प्रादो और आदु' प्रत्ययों की संयोजना हाने के पूर्व उन अकारान्त शब्दों के अन्त्य 'अकार' का लोप हो जाता है और तदनुसार शेष रहे हुए व्यजन्त शब्दों में इन 'श्रादो तथा प्रादु' प्रत्ययों की संयोजना को जाती है। जैसेः-दूरात् एव = इरादीच्यव = दूर से ही -