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* प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित * .0000.me.ne.morrorenorroretiretroversiretomorrorsmootoroom
स्पृशः फास-स-फरिस-छिव-छिहालु खालिहाः ॥ ४-१८२ ॥
स्पृशतेरेते सप्त आदेशा भवन्ति ।। फासइ । फंसह । फरिसइ । छिवह । छिदइ । आलुखइ । आलिहह ।।
अर्थः-'स्पर्श करना, छूना' अर्थक संस्कृत-धातु पश' के स्थान पर प्राकृत-भाषा में सात धातुओं की आदेश प्राप्ति होती है। ये क्रम में इस प्रकार है:-१) फास, (२)फैम, (३) फरिस (४)चिव, (५) छिए. (६) भालुख और (७) श्रालिह । उक्त सातों एकाथै धातुओं के उदाहरण क्रम से इस प्रकार है:-स्पृशति-(१) फासइ, (२) फसइ, (३) फरिसइ, (४) छिवई, (५) छिहइ, (६) भालुखाइ, और (७) आलिहइ = वह छूता है अथवा वह स्पर्श करता है ।। ४-१८२ ॥
प्रविशे रिश्रः ॥४-१८३ ।। प्रविशेः रिम इत्यादेशो वा भवति ।। रिश्रइ । पषिसइ ।।
अर्थ:--'प्रवेश करना, पैठना, धुसना' अर्थक संस्कृत-धातु 'प्र + विश' के स्थान पर प्राकृतभाषा में विकल्प से 'रिमा धातु-रूप की आदेश प्राप्ति होनी है। वैकल्पिक पक्ष होने से 'पविस' भी होता है। जैसे:-अविशति -रिअर अथवा पपिसह वह प्रवेश करता हैं, वह घुसता है, वह अंदर जाता है ।। ४-१८३ ।
प्रान्मृश-मुषोम्हु सः ॥४-१८४ ॥ प्रात्परयो मंशति मुष्णात्यो स इत्यादेशो भवति ॥ पम्हुसइ । प्रभृशति । प्रमुष्णाति वा ।।
___ अर्थ:-' उपसर्ग सहित 'पशं करना' अर्थक संस्कृत-धातु 'प्र + मश' के स्थान पर तथा 'प्र' अपसर्ग सहित 'चोरना, चोरी करना' अर्थक संस्कृत-धातु 'प्र+मुष' के स्थान पर यों दोनो धातुओं के स्थान पर प्राकृत भाषा में फेवल एक ही धातु-रूप 'पम्हुस' को आदेश प्राप्ति होती है । द्वि अर्थक प्राकृत-धातु 'पम्हुम' का प्राप्तीगक अर्थ संदर्भ के अनुसार कर लिया जाना चाहिये । उसहरण इस प्रकार है:--मृशति-पम्बुसइवह स्पर्श करता हैं अथवा वह छूना है । प्रमुष्णाति = पम्हसइवह चोरता है अथवा वह चोरी करता है । यो मसंगानुमार अधं का समझ लेना चाहिये ।। ४-१८४ ।।
पिषे णिवह-णिरिणास-णिरिणज्ज-रोश्च-चड्डा ॥४-१८५ ॥
पिपेरते पञ्चादेशा भवन्ति वा ॥ णिवहा । णिरिणासह । पिरिणज्जइ । रोचा । चहइ । पचे। पीसह ॥