________________
[४० ]
* प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित * -0000000000000000000rnsrorosrrorrherotestosterosers dreamokerosroom
उत्तर:- संस्कृत धातु 'वृध' में स्थित ऋ' का क्रियापदाय रूप में गुण यिकार हाका मूल-धातु 'वर्ध' रूप में रूपान्तरित हो जाती है और ऐसा होने से उक्त दो धातुओं के अतिरिक्त इस तीसरा धातु कीन नाति हो समीर में सामान्य रुप से तोनों धातुओं को ध्यान में रख कर हो मूल-सूत्र में बहुवचन का प्रयोग किया गया है। यही बहुवचन-ग्रहण का तात्पर्य है। ऐसा स्पष्टीकरण वृत्ति में भी किया गया है ।। ४-२२० ॥
वेष्टः ॥४-२२१ ॥
वेध वेष्टने इत्यस्य धातोः क गट ड इत्यादिना (२-७७ ) प लोपे न्त्यस्य ढो भवति ।। वेढइ । बेढिज्जइ ॥
अर्थ:-लपेटना' अर्थक संस्कृत धातु 'वे' में स्थित हत्तन्त षकार' व्यस्खन का सूत्र संख्या २.७७ से लोप हो जाने के (श्वात शेष रहे हुए धातु-रूप 'घट्' के 'टकार' व्यञ्जन के स्थान पर प्राकृत भाषा में 'कार' व्यञ्जन की प्राप्ति हो जाती है। उदाहरण इस प्रकार हैं:-श्ते = वेढइ = वह लपेटता है अथवा वह घेरता है । दूसरा उदाहरण यों है:-वेष्टश्यते = वेदिजइ% से लपेटा जाता है ।।४-२२१||
समोल्लः ॥४-२२२ ॥ संपूर्वस्य चेष्टतेरन्त्यस्य द्विरुक्तो सो मवति ॥ संवेन्नइ ।।
अर्थ.-'स' सपसर्ग साय मे होने पर वेष्ट धातु में 'पकार' को लोप हो जाने के पश्चात शेष रहे हुए मन्त्य पण 'टकार' के स्थान पर द्वित्व रुप से 'स्त' को प्राप्त प्राकृत भाषा में आदेश रुप से होती है। जेसे:-संवेष्टते = संघेल - वह (अच्छी तरह से) लपेटता है ।। ४-२२२ ।।
वोदः ॥५-२२३ ॥ उदः परस्य वेष्टतेरन्त्यस्य ब्रो वा भवति ॥ उच्चेलइ । उब्वेढइ ॥
अर्थ:--'उम्' उपसर्ग साथ में होने पर वेष्ट धातु में स्थित 'पकार' का लोप हो जाने के पश्चात शेष रहे हा अन्त्य वर्ण 'टकार के स्थान पर विकल्प से द्वित्व रूप से 'ल्ल' की प्राप्ति प्राकृत-भाषा में आदेश रूप से होती है। जैसे:--उद्वेष्टते - उध्येढइ अथवा उज्वेलइ = यह बन्धन मुक्त करता है, अपना वह पूयक करता है ।। ४-२२३ ॥
स्विदां ज्जः ||४-२२४ ।।