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* प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित
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न वा कर्म - भावे व्व क्यस्य च लुक् ॥ ४- २४२ ॥
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कर्मणि भावे च वर्तमानानामन्ते द्विरुक्तो वकारागमो वा भवति, तत्संनियोगे च क्यस्य लुक् ॥ चित्र चिणिज्जइ । जिवह जिगिज्जइ ! सुबह सुगिज्जइ । हुव्वह हुणिज्जइ । म्वइ बुणिज्जइ । लग्न लुखज्जइ । पुम्बइ पुणिज्जइ । धुम्बड़ घुणिज्जइ ॥ एवं भविष्यति । चिव्विदिड् । इत्यादि ॥
अर्थः- संस्कृत भाषा में कर्म वाथ्य तथा भाव वाच्य बनाने के लिये धातुओं में आत्मनेपदीय कात बांधक प्रत्यय जोड़ने के पूर्व जैसे 'यक' = य' प्रत्यय जोड़ा जाता है, वैसे ही प्राकृत भाषा में भी कर्मवाच्य तथा भाव- वाच्य बनने के लिये धातुओं में काल बोधक-प्रत्यय जोड़ने के पूर्व 'ई' अथवा 'इज्ज' प्रत्यय जोड़े जाते हैं, यह एक सर्व-सामान्य नियम हैं, परन्तु 'चि, जि, सु, हु, थु, लु, पु, और धु' इन आठ धातुओं में उपरोक्त कर्मणि भावे प्रयोग वाचक प्रत्यय 'इन अथव' इज्ज' के स्थान पर द्विरुक्त अर्थात द्वित्र 'o' की प्राप्ति भी विकल्प से होती है और तत्पश्चात् वर्तमानकाल, भविष्यकाल यादि के काल बधिक प्रत्यय जोड़े जाते हैं। यों 'ईस अथवा इजन' का लोप होकर इनके स्थान पर कंवल 'व्' प्रत्यय की विकल्प से आदेश प्राप्ति हो जाती है ।
वृत्ति में 'च क्यस्य लुक' ऐसे जो शब्द लिखे गये हैं, इनमें 'च' अव्यय से यह तात्पर्य बनाया गया है कि इन धातुओं में 'क' प्रत्यय जुड़ने पर सूत्र संख्या ४- २४१ से प्राप्त होने वाले 'कार' व्यञ्जनाक्षर की आगमप्राप्ति मी नहीं होगी। 'क्याय' पद से यह विधार किया गया है कि 'ईश्र और इज्ज' प्रत्ययों का भी लोप हो जायगा। ऐसा अर्थ बोध 'लुक' विधान से जानना ।
उपरोक्त आठों ही धातुओं के उमय स्थिति वाचक उदाहरण यतमान-काल में कम से इस प्रकार है: – (१) चीयते = चिव्वइ अथवा चिणिजइ = उससे इकट्ठा किया जाता है । (२) जीयते = जिव्ह अथवा जिंणिज्जइ = उस से जीता जाता है । (३) श्रूयते - सुम्वइ श्रथवा सुणिज्जइ - उससे सुना जाता है । ( ४ ) स्तूयते = व अथवा थुणिज्जइ = उससे स्तुति की जाती हैं । (५) हृह्यते = वह अथवा हुणिज्जइ = उससे हवन किया जाता है । (६) मते- लुव्वइ श्रथवा लणिजइ = उससे लूगा जाता हैउससे काटा जाता है । (७) पूयते -पुव्वह अथवा पुर्णिज्जइ= उससे पवित्र किया जाता है और (८) धूयते = धुम्बइ अथवा घुणिज्जइ = उससे धुना जोता है अथवा उससे कंपा जाता है।
इन उदाहरणों को ध्यान पूर्वक देखने से विदित होता है कि 'जहां पर व्य प्रत्यय का श्रागम हैं, बहार और इज्ज का लोप हैं तथा जहां पर ए और इज्ज प्रत्यय हैं यहां पर व् प्रत्यय नहीं है। भविष्यत् काल में भी ऐसे ही उदाहरण स्वयमेव कल्पित कर लेना चाहिये । विस्तार मय से केवल नमूना रूप एक उदाहरण वृत्ति में दिया गया है, जो कि इस प्रकरा हैः- चीयिष्यते = चिविहिर