________________
* प्राकृत व्याकरण *
[४२३ ] 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 तो द्वित्व-अक्षरत्व रहेगा अथवा 'ईन या इन्न' प्रत्यय ही रहेगा। जैसे:-गम्यते-गम्मइ अथवा गमिजद-जाया जाता है। (२) हस्यते-हस्सा अथवा हसिजइहंसा जाता है। (३) मण्यतेभण्णइ अथवा भणिज-कहा जाता है, बोला जाता है। (४) छुप्यतेलुष्पड़ अथवा झुविजइस्पश किया जाता है।
सूत्र-संख्या ४-२२६ में विधान किया गया है कि 'रुद् और नम्' धातुओं के अन्त्य अक्षर को 'वकार' अक्षर की आदेश प्राप्ति हो जाती है। तदनुसार यहां पर संस्कृतीय धातु 'रुद्' को 'रुव' रूप प्रदान कर के इसका उदाहरण दिया जा रहा है। (५) रुद्यते - सध्या अथवा साविजाइ - रोया जाता है-रुदन किया जाता है। (5) लभ्यते = लभइ अथवा लहिज्जइ = प्राप्त किया जाता है। (७) कथ्यते-कथइ अथवा काहज्जइ-कहा जाता है। इन 'लभ और कथ' धातुओं में इसी सूत्र से प्रथम बार तो द्वित्व, भ और थ्थ' की प्राप्ति हुई है और पुनः सूत्र-संख्या २-10 से 'भ तथा स्थ' की प्रानि होने से उपरोक्त उदाहरणो में 'लम्म तथा कस्थ' ऐसा स्वरूप प्रदर्शित किया गया है। 1८) भुज्यतेभुजाइ अथवा भुजिज्जा-खाया जाता है, भोगा जाता है। यहाँ पर 'भुज्' को 'भुज्' की प्राप्ति सूत्र संख्या ४-११० से हुई है। यह ध्यान में रखना चाहिये।
भविष्यत काल का दृष्टान्त इस प्रकार से है:- गमिष्यते गम्मिाहइ अथवा गमिहिइ= जाया जायगा; इत्यादि रूप से समझ लेना चाहिये ।। ४-२४६ ।।
हृ-कृ-तृ-जामीरः ॥४-२५० ।। एपामन्त्यस्य ईर इत्यादेशो चा भवति ॥ तस्संनियोगे च क्य-लुक ।। हीरह । हरिज्जइ ॥ कीरइ । करिज्जइ । तीरइ । तरिज्जह । जीरइ । जरिज्जइ ।।
अर्थः-प्राकृत-भाषा में (१) हरना, चोरना' अर्थक धातु 'स' के, (२) 'करना' अर्थक धातु 'कृ' के, (३) 'तरना, पार पाना' 'अर्थक धातु 'तृ' के, और (४) 'जोण होना' अर्थक धातु 'ज' के कर्मणि भावे-प्रयोग में अन्त्य स्वर 'ऋ' के स्थान पर 'ई' अक्षरावयव की विकल्प से आदेश प्राप्ति होती है अर्थात 'द का हीर, कृ का कीर, तु को तीर, और ज़ का जोर हो जाता है और ऐसा होने पर कर्मणिभावे-प्रयोगाथक प्रत्यय 'ईश्र अथवा इन' का लोप हो जाता है। यो जहाँ पर इन धातुओं में ईम अथवा इज' का सद्भाव है वहाँ पर इन धातुओं के अन्य स्वर 'ऋ' के स्थान पर 'ईर' प्रादेश की प्राप्ति नहीं होती है। ईर' आदेश की प्राप्ति होने पर ही ईश्र अथवा इज' का लोप होता है यह स्थिति वैकल्पिक है उक्त चारों प्रकार की धातुओं के उदाहरण क्रम से इस प्रकार है:-वियते-हीरड़ अथवा हारज्जा - हरण किया जाता है अथवा चुराया जाता है। [२] कियते = कीरज अथवा कारज्जइ = किया जाता है। [2] तीर्यते - तरिड अथवा तारज्जद तरा जाता है, पार पाया