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* प्राकृत व्याकरण *
[ ४२६ ] mootootoro000rosaroot0+000totosorrorentrolors00000000000000000000. विद्वत्तं इकट्ठा किया हुअा अथवा कमाया हुआ. पैदा किया हुश्रा (१२) स्पष्टम्-छित = छुपा हुश्रा, स्पर्श किया हुआ । (१६) स्थापितम् नि म अं स्थापित किया हुआ, रखा हुआ। (१४) श्रास्वादितम् - चक्खिरं = स्वाद लिया हुआ, चखा हुअा। (१५) लूनम् = तुअं - लुगा गुमा, काटा हुआ। (१५) त्यसम्जद छोड़ा हुअा, स्यागा हुआ। (१७) क्षिप्रम = मासि- फका हुआ, छोड़ा हुमा सेषित, श्राराति । (१८) उद्धृत्तम् = निफ्छूद्ध = पीछा मुड़ा हुआ, निकला हुा । (१६) पर्थस्तम्पलहत्थं और पलोई दूर रखा हुअा, फका हुआ। (२०) हे पतम् = हातमण = खंडारा हुआ, घोड़े के शब्द जैसा शब्द किया हुश्श्रा।
कर्मणि-भून कृदन्त में यों कुछ एक धातुओं को अनियमित स्थिति 'यादश-रूप' से जाननी चाहिये । यह स्थिति वैकल्पिक है। इस स्थिति में कर्मणि-भून कृदन्त-बांधक-प्रत्यय 'त= अ' धातुओं में पहिले से ही (मह जात रूप से) जुड़ा हुआ है। अतएव 'त = अ' प्रत्यय को पुनः जोड़ने की श्रावश्यकता नहीं है। यों ये विशेषणात्मक है. इस लिये संज्ञायों के समान ही इन क रूपमा विभिन्न विभक्तियों में तथा वचनों में बनाये जा सकते हैं ।। ४-२५८ ।।
धातवोर्थान्तरेपि ॥ ४-२५६ ॥ उक्तादर्थादर्थान्तरपि धातवी वर्तन्ते ॥ बलिः प्राणने पडितः खादने पि वर्तते । पलह । खादति, प्राणनं करोति वा ।। एवं कलिः संख्याने संज्ञाने पि । कलह । जानाति, संख्यानं करोति वा ॥ रिगि गती प्रवेशे पि ॥ रिगइ । प्रविशति गच्छति का ॥ कक्षित बफ आदेशः प्राकृते । बम्फइ। अस्यार्थः । इच्छति खादति वा 11 फकतः थक आदेशः । थकह। नीचां गतिं करोति, विलम्बयति या ॥ विलयुपालम्म्यो झन्ख प्रादेशः । झंखइ । विलपति, उपालमते भापते बा ॥ एवं पडिवालेइ । प्रतीचते रक्षति वा ॥ केचित् कथिदुप सग नित्यम् । पहरइ । युध्यते ।। संहरइ । संवृणीति ॥ अणुइइ । सदृशी भवति ।। नीहरइ । पुरीपोत्सर्ग करोति ।। पिहरइ । क्रीडति ॥ आहरइ । खादति ॥ पडिहरइ । पुनः पूरयति । परिहरइ । त्यजति ॥ उवहरइ । पूजयति ॥ बाहरह । आह्वयति ।। पत्रसइ । देशान्तरं गच्छनि ।। उच्चुपह चटति ॥ उल्लुहइ । निः परति ।।
अर्थ:-प्राकृत भाषा में कुछ एक पातु ऐसी हैं, जो कि निश्चित अर्थ वाली होती हुई भी कभी कभी अन्य अर्थ में भी प्रयुक्त की जाती हुई देखो जाती है। यों ऐसी धातुएँ दो अर्थ काली हो जाती हैं। एक तो निश्चित अर्थ वाली और दूमग वैकल्पिक अर्थ वाली। इन धातुओं को द्वि-अर्थक धातुओं की कोदि में गिलना चाहिये । कुछ एक उदाहरमा यौ है:-१) बलइ-प्राणनं करोति अथवा खादति =