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*पियोदय हिन्दी व्याख्या सहित *
जाता है, और [४] जीर्यते = जीरड़ अथवा जरिज्जद-जीर्ण हुश्रा जाता है । कर्मणि-भावे प्रयोगार्थ में उक्त चारों धातुओं की यों अभय स्थिति को सम्यक् प्रकार से समझ लेना चाहिये ।। ४-२५० ।।
अर्जे विढप्पः ॥ ४-२५१ ॥
अन्त्यस्येति निवृत्तम् । अर्जेविंदप्प इत्यादेशो वा भवति ॥ तत्संनियोगे क्यस्य च लुक ॥ विढप्पइ । पक्षे । विढविजइ । अजिज्जइ ।।
अर्थ:-उपरोक्त सूम्र-संख्या १-२४० तक अनेक धातुओं के अत्याक्षर को श्रादेश प्राप्ति होती रही है। परन्तु अब इस सूत्र से आगे के सूत्रों म चातुश्री के स्थान पर वैकल्पिक रूप से अन्य धालुओं की भाशा मंविधान दिया जाने वाला है, इस लिये अब यहाँ से अथात इम सूत्र से 'अन्स्य' अक्षर को आदेश-प्राप्ति का संविधान समान हुआ जानना। एसा इश्लेख इसा सूत्र की वृत्ति के आदि शब्द से समझना चाहिये ।
___उपार्जन करना, पैदा करना अर्थक संस्कृत-धातु 'बर्ज' का प्राकृत रुपान्तर 'अज' होता है; परन्तु इस प्राकृत-धातु 'माज' के स्थान पर फर्मणि-भावे प्रयोगार्थ में प्राकृत भाषा में विकल्प से 'विढाप अथवा विढव' धातु रूप को अावेश-प्राप्ति होती है और ऐसी आदेश प्राति विकल। से होने पर कमणि-भाव-बोधक प्रत्यय 'ईश्र अथवा इज्ज' का लोप हो जाता है। यों इन 'ईअ अथवा ईज्ज' प्रत्ययों का लोप होने पर ही 'विढप्प अथवा विढा' घातु-रूप की विकल्प से आदेश-प्राप्ति जानना । तत्पश्चात-काल बोधक-प्रत्ययों की इस आदेश-प्राप्त धातु रूप में संयोजना की जाती है।
जहाँ पर 'अर्ज' का प्राकृत-रूपान्तर 'अज्ज' हा यदि रहेगा ता कर्मणि भावे प्रयोगार्थ में इस 'अन्ज' धातु में 'ईश्र अथवा इज' प्रत्यय की संयोबना कर के तत्पश्चात ही काल-बोधक-प्रत्ययों की संयोजना की जा सकेगी। जैसे:-अज्यते - पिढप्पड़ (अथवा विवइ) अथवा अज्जिमई - उपार्जन किया जाता है, पैदा किया जाता है । यो 'विढप्प अथवा विढव' में 'ईश्र. ' प्रत्यय का लोप है, जब कि 'अज्ज' में 'इज्ज' प्रत्यय का सदुभाव है।
___ 'बहुलम्' सूत्र के अधिकार से कहीं कहीं पर 'विक आदेश प्राप्त धातु में भी इन अथवा इम' प्रत्यय का सद्भाव :देखा जाता है। जैसा कि वृत्ति में उदाहरण दिया गया है कि:-अय॑ते = विटापिज्जा = पैदा किया जाता है, उपार्जन किया जाता है ॥ ४-२५१ ।।
ज्ञो णव-णज्जी ॥ ४-२५२ ॥