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* प्राकृत व्याकरण "
[ ४२१ ] -10000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000
दहोन्त्यस्य कर्म भावे द्विरुक्तो को बा भवति ।। तत्संनियोगे क्यस्य च लुक् ।। डझइ । डहिज्ज । भविष्यति । डज्झिहिह । डहिहिह ।।
अर्थ:-- जलाना' अथक सस्कृत-धातु दह' का प्राकृत-रूपान्तर 'सह' होता है। इस प्रकार के प्राप्त 'डह' धातु के कणि-भावे प्रयोग में काल-बोधक प्रत्यय जोड़ने : पूर्व 'दह' धातु के अन्त्य पज्जनाक्षर 'हकार' के स्थान पर द्विभक्त अथवा द्वित्व 'म = (सूत्र संख्या २-१०) से 'झ' को आदेश प्राप्ति विकल्प से होती है तथा ऐना होने पर कर्मणि-भाव अर्थक प्राकृत-प्रत्यय 'ईप अथवा इज' का लोप हो जाता है। यदि कार' के स्थान पर नहीं किया जाय तो ऐसी स्थिति में 'ईश्र अथवा इम' प्रत्यय का अभाव अवश्य रहेगा । जैसे:-नह्यते-डज्झाइ अथवा डहिज्जइ = जलाया जाता है। भविष्यत-कालीन दृष्टान्त यो है:-दहिष्यते-डज्झिहिड़, उहिाहड़ - जलाया जायगा ॥ ४-२४६ ।।
वन्धो न्धः ॥४-२४७ ॥
बन्धेर्धातोरन्त्यस्य न्ध इत्यवयवस्य कर्म भावे जो वा भवति ॥ सत्संनियोगे क्यस्य च लुक् ।। बज्झइ । बन्धिज्जाई । भविष्यति । पझिाहिइ । पन्धिहिइ ॥
अर्थ:-बांधना' अर्थक घातु 'बन्ध' के अन्य अक्षर अवयव 'ध' के स्थान पर कर्मणिभावे-अर्थ में काल-बोधक प्रत्यय जुड़ने के पूर्व 'झ' अक्षरावयव की विकल्प से प्रति होती है। तथा ऐसा होने पर कर्मणि-भावे अर्थक प्राकृा-प्रत्यय 'ईअ अथवा इज' का लोप हो जाता है । यदि 'ध' के स्थान पर 'झ' नही किया जायगा सो ऐपो स्थिति में 'ईअ अथवा इज' प्रत्यय का सद्भाय अवश्य रहेगा । जैसे-बध्यते= . साइ अथवा बन्धिजइ = चाँधी जाता है । भविष्यत कालीन उदाहरण यों है:-बन्धिष्यते-बज्ािहिइ अथवा चन्धिाइ - बांधा जायगा।
'बन्धिहिइ क्रियापद कर्मणि-भावे प्रयोग में प्रदर्शित करते हुए भविष्यत् काल में लिखा पत्र है और ऐसा करते हुए कर्मणि भावे अर्थ वाले प्रत्यय 'ईम अथवा ज्ञज्ज' का जो लोप किया गया है, इस संबंध में मूत्र सख्या ३-१६० की वृत्ति का संविधान ध्यान में रखना चाहिये । इसमें यह स्पष्ट रूप से बतलाया है कि 'बहुलम्' सूत्र के अधिकार से कहीं वहीं पर 'ईन अथवा इज' प्रत्ययों का विकल्प से कोप हो जाता है और ऐसा होने पर भी कमरिण-भावे अर्थ को उपस्थिति हो सकती है।
सूत्र-संख्या ४-४३ से ४-२४६ तक में प्रदर्शित भविष्यत-कालीन उदाहरणों के संबंध में भी यही बाब ध्यान में रखना चाहिये कि इनमें विकल्प से 'ईअ अथवा इज्ज' प्रत्ययों का लोप करके भी कर्मणि-भावे अर्थ में भविष्यत-काल प्रदर्शित किया गया है, तदनुसार इसका कारण उक्त सूत्र संख्या ३-१८० की वृक्ति ही है ॥४-२४७ ॥